बुधवार, जनवरी 31, 2007

मैथिली गुप्तजी और पत्रकारिता

करीब ग्यारह घण्टे पहले मुझे यह ई- मेल भेजा गया :

 

श्री अफ़लातून जी;
हम समाचारों से परे, हिन्दी रचनाओं की एक वेबसाईट (
www.cafehindi.com)  बना रहें हैं.

क्या हम आपके ब्लोग रचनायें इस वेबसाईट पर उपयोग कर सकते हैं? इस वेबसाईट का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है.

मैंने क्या वैश्वीकरण का मानवीय चेहरा संभव है ? की समस्त किश्तें पढी.  पढ्ने के बाद आप कम से कम दस मिनट तक गुमसुम तो बैठेंगे ही.

क्या इसे एक ई-बुक का रूप देकर अन्तर्जाल पर डालना उचित नही रहेगा?
आपका
मैथिली गुप्त

    पत्र पा कर मुझे लाजमी तौर पर मैथिलीजी की साइट देखने की उत्सुकता हुई।साइट पर मेरे चिट्ठों की तीन प्रविष्टियों के अलावा अन्य सभी आलेख भी अन्य चिट्ठेकारों के द्वारा अपने-अपने चिट्ठों पर पहले छापे गए ही थे।

    पहली बात तो यह है कि मुख्यधारा से परे होने के बावजूद हिन्दी चिट्ठेकारों की उक्त प्रविष्टियाँ 'समाचारों से परे' नहीं हैं । मैथिलीजी द्वारा उन्हें चुनना भी इसी कारण हुआ है। मैथिलीजी मेरी प्रविष्टियों को अपने जाल-स्थल पर छापने के पहले यदि पूछ लेते तो पत्रकारीय दृष्टि से बेहतर होता ।बहरहाल,उन्हें इन चिट्ठों पर जा कर सार्वजनिक तौर पर यह भूल कबूलनी चाहिए।

    किसी भी पत्र - पत्रिका के लिए लिखना और लिखवाना अहम कार्य होता है।मैथिलीजी दोनों से मुक्त हो कर पत्रकारिता करना चाहते हैं तो यह उनकी भूल है ।चिट्ठेकारों की आम राय से मैथिलीजी यहाँ से रू-ब-रू हो जाँए।

    मैं कॊपीराइट में नहीं मानता हूँ।लेकिन यह सामान्य सी उम्मीद जरूर करता हूँ कि स्रोत का उल्लेख ससम्मान होना चाहिए।

    जहाँ तक सुनील के द्वारा दिए लखनऊ विश्वविद्यालय में दिए गए 'किशन पटनायाक स्मृति व्याख्यान'  का सवाल है ( इसे मेरे चिट्ठे पर ' क्या वैश्वीकरण का मानवीय चेहरा संभव है?' शीर्षक से सात कड़ियों में दिया गया है।) उन्हें ई-किताब के रूप में मैं शीघ्र प्रस्तुत करूँगा। तब तक इस टैग की मदद से उन्हें पढ़ा जा सकता है ।

    मैथिलीजी ने कुछ प्रस्तुतियों में अन्य स्रोतों से चित्रों को जोड़ कर उन्हें कुछ बेहतर ढ़ंग से जरूर पेश किया है।ऒनलाइन पत्रकारीय हुनर तथा एक वेबसाइट के मालिक होने के नाते इतना माद्दा तो उनमें होना जरूरी है।

     मैथिलीजी का उद्देश्य कोई भी लाभ कमाना नहीं है,ऐसा उनका दावा है।फिर भी कोई उद्देश्य उनका जरूर होगा उसे भी उन्हें सार्वजनिक करना चाहिए।

    जहाँ तक मेरे चिट्ठों से ली गई प्रविष्टियों की बात है कि पहले अनुमति न लेने की भूल यदि वे इस चिट्ठे पर कबूलें तो मुझे आपत्ति नहीं रह जाएगी।दो वर्ष पहले अपनी वेबसाइट का पंजीकरण कराने के बावजूद इन्होंने उसे हाल ही में सक्रिय किया है। पत्रकारीय शैशव की इन चूकों से उन्हें आगे के लिए सीख लेनी होगी ।

 

 

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