गुरुवार, जनवरी 11, 2007

विदेशी पूंजी से विकास का अन्धविश्वास (६)

डॊलर -रुपये की लूट
अंतर्राष्ट्रीय विनिमय में अमरीका जैसे देश एक और तरीके से भारत जैसे देशों को लूट रहे हैं । वह है डॊलर और रुपए का विनिमय दर । बीस साल पहले एक डॊलर आठ-दस रुपये का था , आज वह ४८ रुपये का हो गया है। लेकिन क्रयशक्ति समता ( Purchasing Power Parity ) के हिसाब से देखें , अर्थात वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की क्षमता से तुलना करें , तो एक डॊलर आज भी दस रुपये से ज्यादा का नहीं होना चाहिए । इस अत्यधिक गैरबराबर विनिमय दर का मतलब है कि हम अपने आयातों का पांच गुना ज्यादा भुगतान कर रहे हैं। यह जबरदस्त लूट और शोषण है ।
अब बात साफ हो जानी चाहिए । इस जबरदस्त लूट और शोषण को सुविधाजनक बनाने और बढ़ाने के लिए ही अमरीका व दुनिया के अन्य अमीर देश मुक्त व्यापार की हिमायत करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने की वकालत करते हैं । विश्व व्यापार संगठन भी इसीलिए बनाया गया है तथा मुक्त व्यापार के क्षेत्रीय समझौते भी इसीलिए किए जा रहे हैं । दरअसल वैश्वीकरण की यह व्यवस्था नव-औपनिवेशिक शोषण और साम्राज्यवादी लूट का ही नया रूप है,नया औजार है । जैसे विदेशी पूंजी से भारत के विकास की बात वास्तविकता से परे एक अन्धविश्वास है , वैसे ही मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय ढांचे में निर्यातों से देश के विकास को गति मिलेगी,यह भी एक और अन्धविश्वास है ।
इन्हीं आर्थिक अंधविश्वासों के चलते आज भारत की अर्थव्यवस्था एक गहरे संकट में फंस गयी है । भले ही ऊपर बैठे शासक और अर्थशास्त्री ८ प्रतिशत विकास दर की खुशियाँ मनाते रहें , लेकिन देश की विशाल आबादी जबरदस्त बेरोजगारी,कंगाली,कुपोषण और अभावों से जूझ रही है । किसान , बुनकर , कारीगर और छोटे व्यापारी हजारों की संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं । पिछले पन्द्रह वर्षों में देश के पांच लाख छोटे-बड़े उद्योग बंद हो चुके हैं । जिस तरह का औद्योगिक विनाश ( de-industrialisation) डेढ़ सौ वर्ष पहले अंग्रेजों के राज में भारत में हुआ था , उसी तरह का औद्योगिक विनाश बड़े पैमाने पर एक बार फिर आजाद भारत में हो रहा है । तब खेती पर निर्भर आबादी बढ़ गयी थी , अब तथाकथित ‘ सेवाओं’ का हिस्सा बढ़ रहा है । लेकिन खेती , पशुपालन , उद्योग , खदानें , आदि में ही वास्तविक उत्पादन एवं आय सृजन होता है । एक सीमा के बाद सेवा क्षेत्र की वृद्धि भी इन पर निर्भर रहती है ।यदि खेती-उद्योग का विनाश होता है तो मात्र ’ सेवाओं ‘ के दम पर कोई भी अर्थव्यवस्था नहीं चल पाएगी । पूरा देश एक बार फिर बरबादी ,कंगाली और गुलामी की राह पर है ।
देश बचेगा , तो हम बचेंगे
जैसे पुत्रमोह में धृतराष्ट्र अन्धे हो गए थे और सच्चाई व न्याय को नहीं देख पा रहे थे तथा न ही अवश्यंभावी कलह तथा विनाश को देख पाये , वैसे ही आज के शासक भी वैश्वीकरण की चकाचौंध में देश के ऊपर आसन्न संकट को देख नहीं पा रहे हैं। यदि इसे नहीं रोका गया, तो पौराणिक ‘महाभारत’ से ज्यादा बड़ी विनाशलीला होगी । ऐसे भारत का भविष्य अंधकारमय है । और यदि भारत का कोई भविष्य नहीं होगा,तो बी.एस.एन.एल का भी कोई भविष्य नहीं होगा। आज बी.एस.एन.एल. के ऊपर जो संकट आ रहा है, वह वैश्वीकरण की विनाशकारी प्रक्रिया का हिस्सा है । बी.एस.एन.एल. का भविष्य अनिवार्य रूप से देश के भविष्य से जुड़ा है ।
ऐसी हालत में , हम सबको मिलकर देश को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा । लेकिन यह लड़ाई बी.एस.एन.एल. के कर्मचारी अकेले नहीं लड़ पाएंगे। इसके लिए उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य कर्मचारियों , किसानों, मजदूरों , बुनकरों,मछुआरों , आदिवासियों ,दलितों आदि के साथ एकता बनाना पड़ेगा। मरा आपसे अनुरोध है कि पगार तथा बोनस की लड़ाई छोड़ें।वे तो छोटी बातें हैं। इस बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो जाएं । तभी देश बचेगा और तभी बी.एस.एन.एल भी बचेगा ।
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( नेशनल फेडरेशन ओफ़ टेलिकोम एम्प्लाईज़,बी.एस.एन.एल औरंगाबाद जिला शाखा,महाराष्ट्र द्वारा विदेशी पूंजी और बी.एस.एन.एल. का भविष्य पर आयोजित परिसंवाद में सुनील,राष्ट्रीय महामन्त्री,समाजवादी जनपरिषद का भाषण, दिनांक १० फरवरी २००६ )

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