रविवार, दिसंबर 23, 2007

मोदी की जीत गुजरात की शर्मनाक हार है

    मोदी द्वारा गुजरात की जनता का साम्प्रदायिकीकरण फिर सफलतापूर्वक प्रकट हुआ। उसका विकल्प न होना दुर्भाज्ञपूर्ण है । कांग्रेस का भोथरा सेक्यूलरवाद और मोदी की कांग्रेसी आर्थिक नीति गुजरात की जनता के लिए बुरे दूरगामी परिणाम लाएगी । हिटलर ने भी चुनाव जीता था और बहुसंख्यक की फिरकापरस्ती और उन्माद पर सवार हो कर राजीव गाँधी ने भी। एक झूठा दर्प भी हिटलर ने पैदा किया था, मोदी ने भी किया है। गनीमत है कि अभी भी हिटलर जितनी सफलता उसे नहीं मिली है । डॉ. लोहिया की बात याद आ रही है : गद्दार अपने आप में या गद्दारी भी खतरनाक नही होती , जनता का समर्थन न मिलने पर वह बेमानी साबित हो जाती है। गद्दारी खतरनाक तब हो जाती है जब उसको जनता का समर्थन मिल जाता है। राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवाद का प्रयोग सीमित दायरे में सफल होगा- जिन सूबों में सिर्फ दो दल होंगे , लगभग एक जैसे।

मंगलवार, दिसंबर 11, 2007

भारत का कुलीकरण (अंतिम) :टेक्नो बाबू का उदय : गंगन प्रताप

टेक्नो बाबू का उदय

    भारत जिस किस्म की सूचना टेक्नॉलॉजी (आई.टी.) में लगा है उसे राजेश कोचर ने "सूचना छेड़छाड़" की संज्ञा दी है । " यदि आई.टी. को हम एक नई सायकल डिज़ाइन करने जैसा मानें , तो भारत को जो काम सौंपा गया है वह मात्र पंचर जोड़ने का है ।" कोचर इसे कुलीकरण कहते हैं :

    " ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में जो औपनिवेशिक विज्ञान शुरु किया था और जिसमें देशी लोगों को नियुक्त किया गया था , वह प्रयोगशाला विज्ञान नहीं बल्कि मैदानी विज्ञान ( भूगोल,भूगर्भ विज्ञान,वनस्पति शास्त्र और यहाँ तक कि खगोलशास्त्र) था । आज एक सदी बाद फिर पश्चिमी देश लोगों को नियुक्त कर रहे हैं । यह काम देशांतर पर टिका है- पश्चिमी देशों का दिन अब २४ घण्ते का है - अंतर सिर्फ इतना है कि दफ्तर का काम अब ओवर टाइम देकर नहीं करवाया जाता बल्कि एक-तिहाई वेतन देकर करवाया जाता है । "

    इस तरह हम टेक्नो-बाबुओं के राष्ट्र बनकर रह गए हैं ।

    विचारों के इस पुंज का समापन मैं फ्राइडमैन के एक साक्षात्कार से करना चाहूँगा । यह साक्षात्कार मेरे एक मित्र ने मुझे भेजा था :

" यदि  आपका सामान ब्रिटिश एयर या स्विस एयर में गुम हो जाए तो आप इसकी तलाश के लिए फोन करते हैं । जो व्यक्ति जवाब देता है वह बैंगलोर में है । यदि आपके डेल कम्प्यूटर में कोई दिक्कत है और आप फोन करते हैं तो दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति एक भारतीय होगा जो बैंगलोर में बैठा है । यह शहर हर वर्ष विभिन्न इंजीनियरिंग व कम्प्यूटर विज्ञान संस्थाओं से करीब ४०,००० तकनीकी स्नातक तैयार करता है।ये सब किसी न किसी अमरीकी कम्पनी को बैकरूम क्षमता प्रदान करने में खप जाते हैं ,बैंगलोर में बैठे-बैठे।"

    जी हां , सिर्फ बैकरूम क्षमताएं , जबकि "केन्द्रीय क्षमताएं" यू.एस. में ही बनी रहती हैं । तो,अब आप समझ गए होंगे कि ए.एम. नाइक को गुस्सा क्यों आता है।जो बात फ्राइडमैन नहीं देख पाते उसे नाइक पकड़ते हैं- देश के सब से होनहार युवा धीरे-धीरे शेष विश्व के लिए टेक्नो कुली बनते जा रहे हैं । आपको उत्तरी अमरीका या युरोप के होशियार युवा किसी भारतीय या चीनी कम्पनी के लिए ऐसी कुलीगिरी करते नहीं मिलेंगे । इंफोसिस और विप्रो का चमत्कार यही है कि उन्होंने देश के सबसे होशियार लड़के-लड़कियों को इकट्ठा करके उन्हें उत्तरी अमरीका , युरोप , और जापान का टेक्नो कुली बना दिया है। सच्चाई यह है कि माइक्रोसॉफ़्ट या ओरेकल या सिस्को एम.आई.टी. और कैलटेक के होशियार स्नातकों को टेक्नो कुली बना बना कर दुनिया की सबसे अमीर कम्पनियाँ नहीं बनीं हैं। ये लोग तब भारत और चीन के लिए काम नहीं करते जब हम नींद में होते हैं ।यह एक ऐसा असंतुलन है जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके चलते वैश्वीकरण तो कुलीकरण का पर्याय हो जाएगा।

( स्रोत फीचर्स )

गुरुवार, दिसंबर 06, 2007

भारत का कुलीकरण : लेखक - गंगन प्रताप







देश के सबसे होनहार युवा धीरे - धीरे शेष विश्व के लिए टेक्नो-कुली बनते जा रहे हैं । इंफोसिस और विप्रो का चमत्कार यही है कि उन्होंने देश के सबसे होशियार लड़के-लड़कियों को इकट्ठा करके उन्हें उत्तरी अमरीका , युरोप और जापान का टेक्नो-कुली बना दिया है । यह एक ऐसा असंतुलन है जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके चलते वैश्वीकरण कुलीकरण का पर्याय हो जायेगा।इस महत्वपूर्ण मगर उपेक्षित मुद्दे पर कुछ विचारों व प्रतिध्वनियों की बानगी प्रस्तुत है। स्रोत : स्रोत , दिसम्बर २००५


केरल मॉडल


ई. एम. एस. नम्बुदरीपाद की संकलित रचनाओं के २१वें खण्ड में उन्होंने १९५८ के केरल की बुनियादी समस्या को इन शब्दों में पकड़ा था :



" राज्य की बुनियादी समस्या यह है कि वह अपने विशाल मानव संसाधन का उपयोग नहीं करता । राज्य के प्राकृतिक संसाधनों की साज संभाल करने की बजाय केरल के लोग देश भर में क्लर्क और कुली बन रहे हैं ।"


भारतीय मॉडल


ई. एम.एस. ने जो बात केरल के बारे में कही थी , वह आज पूरे देश के बारे में कही जा सकती है । हमारे सर्वोत्तम व सबसे प्रतिभावान लोग ( आई.आई.टी. वगैरह ) दुनिया भर में क्लर्क और कुली बनते जा रहे हैं । भारत की बुनियादी समस्या अपने विशाल मानव संसाधन का उपयोग न कर पाने की हो गयी है । देश के प्राकृतिक संसाधनों को न संभालकर , भारतीय लोग पलायन कर रहे हैं । हमारे देश के सबसे प्रतिभावान युवा ( ७०,००० प्रवासी + २,००,००० एल-१ और एच-१ बी व छात्र वीसाधारी ) देश छोड़कर अमरीका चले जाते हैं ।


हमारे यहां इन्सानों की तरक्की पर चंद बिरले व असाधारण क्षमता वाले लोगों का बोलबाला रहता है। प्रतिभा पलायन एक छन्नी है, जिसके ज़रिए देश के सर्वोत्तम प्रशिक्षित व्यक्ति अन्य देशों में ( आजकल अधिकतर यू.एस.ए) चले जाते हैं। इस लिहाज से देखें, तो हमारे जैसे प्रतिभादानी देशों को इससे भारी नुकसान होता है और इस दान के प्राप्तकर्ता देशों को भरपूर लाभ भी होता है । अर्थात प्रतिभा पलायन एक ऐसी विकट समस्या है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।


जूठन की जूठन की जूठन


इन्द्रजीत गुप्त और रामी दत्ता हर्दसमलानी के साथ बातचीत के दौरान एल एण्ड टी के अध्यक्ष ए. एम. नाइक ने सवाल किया था कि "फिर भारत की सड़कें , बंदरगाह और पुल कौन बनायेगा?" एल एण्ड टी में आज ३०,००० कर्मचारी हैं ।निर्माण कार्य में लगी इस कम्पनी में १२,००० इजीनियर्स हैं । इसे हर साल २००० इजीनियर्स की जरूरत होती है ।मगर हर साल २००० इंजीनियर्स कंपनी छोड़कर चले जाते हैं और नए इंजीनियर्स आसानी से नहीं मिलते। कारण यह है कि आज ज्यादातर इंजीनियरिंग स्नातक उत्पादन के क्षेत्र में काम नहीं करना चाहते हैं ।ये सब नई अर्थव्यवस्था की सूचना टेक्नॉलॉजी कम्पनियों में काम करने को उत्सुक हैं ।जब १९६३ में स्वयं नाइक ने स्नातक उपाधि प्राप्त की ह्ती, तब इंजीनियरिंग की तीन पसंदीदा शाखाएं थीं : मेकेनिकल ,इलेक्ट्रिकल और सिविल। आज अधिकांश छात्र कंप्यूटर विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स की कतारों में नजर आते हैं। जो मेकेनिकल लेते हैं , वे भी एल एण्ड टी जैसी कम्पनी में २ साल काम करके विशेषज्ञता हासिल करके किसी आई.टी. कम्पनी में जाना चाहते हैं ।


नाइक का मुद्दा सीधा-सा है - देश में किसी को भी प्रतिभा प्लायन की प्रकृति की जानकारी नहीं है । किसी को भी इस बात का अन्दाज़ नहीं है कि विकसित देश भारतीय प्रतिभा भण्डार का कितना लाभ ले रहे हैं । यह सही है कि आज वैश्विक इजीनियरिग कम्पनियाँ शाखाएं भारत में खोल रही हैं मगर वे उत्पादन चीन में करवाती हैं । " यहां हम १७ अरब डॉलर के आउट्सोर्सिंग जॉब्स पर इतरा रहे हैं मगर हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस कार्य ने अन्य देशों के लिए ३०० अरब डॉलर की जायदाद निर्मित की है ।और देश से बाहर जाने वाली प्रत्येक ३ करोड़ डॉलर की इंजीनियरिंग सेवाओं के कारण देश में १ अरब डॉलर का नुकसान होता है।" यह तर्क नाइक का है। वे आगे कहते हैं - "भारत में प्रतिभा उपलब्ध ही नहीं है। इंजीनियरिंग कॉलेजों से उत्तीर्ण होने वाले करीब ९५ प्रतिशत छात्र यू.एस. और युरोप या दुनिया के अन्य भागों का रुख करते हैं ।हमारे पास तो जूठन की जूठन की जूठन आती है, जो थोड़ा पॉलिश होकर हमें छोड़कर चली जाती है।"


[ जारी ]

शनिवार, दिसंबर 01, 2007

अहमद पटेल के भरोसे नरेन्द्र मोदी

    रेन्द्र मोदी के 'विकास' और मनमोहन सिंह अथवा बुद्धदेव के 'विकास' में फर्क नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच अथवा उमा भारती का रिलायन्स फ्रेश के प्रति विरोध क्रमश: राँची और इन्दौर में होता है । अहमदाबाद , वडोदरा और सूरत में यह विकास (रिलायन्स फ्रेश टाइप) फलता - फूलता है । ' विशेष आर्थिक क्षेत्र ' और उनके लिए बनने वाले परमाणु बिजली घर यदि बंगाल के सिंगूर के निकट बनते हैं तो गुजरात के भावनगर के निकट भी बन रहे हैं ।

    सिर्फ़ साम्प्रदायिकता को राजनीति का आधार बनाने की जैसे एक सीमा है वैसे ही साम्प्रदायिकता-विरोध की राजनीति करने वालो की भी एक सीमा होती है यदि वे   आर्थिक नीतियों का विकल्प नहीं दे पाते ।   

     गुजरात से लोकसभा के लिए चुने गए सदस्यों की संख्या में भाजपा और कांग्रेस में उन्नीस - बीस (मुहावरा) का फर्क है । इसके बावजूद मोदी विरोधी सामाजिक तबके ( पटेल ) के भाजपा के विरोध में मुखर न हो पाना मोदी के हक में सब से बड़ी ताकत है । केशूभाई पटेल समर्थक कई विधायक भले ही इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं परन्तु स्वयं केशूभाई और कंशीराम राणा जैसे मोदी विरोधी नेताओं ने भाजपा नहीं छोड़ी है । वे अभी भी ख्वाब देख रहे हैं कि चुनाव के बाद वे ही भाजपा विधायक दल के नेता चुने जाएंगे। इस परिस्थिति का पूरा पूरा लाभ उठाने के लिए नरेन्द्र मोदी एक फिरकावाराना महीन खेल खेल रहे हैं । खुद से विमुख हो रही पटेल बिरादरी से मोदी पूछते हैं , ' क्या आप नरेन्द्र मोदी की जगह अहमद पटेल को मुख्यमन्त्री बनाना चाहते हैं ? '

    नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप मे किसी नेता के न प्रस्तुत होने का लाभ भाजपा को मिल रहा है । राज्य में सक्रिय दोनों प्रमुख दलों की समान आर्थिक नीतियों का खामियाजा अन्तत: गुजरात के दलित , आदिवासी , किसान और अकलियतों को भुगतना पड़ सकता है।