बुधवार, जनवरी 03, 2007

विदेशी पूंजी से विकास का अंधविश्वास : ले. सुनील

लगभग सात वर्ष पहले की बात है । दूरसंचार क्षेत्र में निजी कंपनियों को लाइसेन्स दिये हुए कुछ वर्ष हो चुके थे । किन्तु इन कंपनियों ने सरकार को लाइसेन्स शुल्क का नियमित भुगतान नहीं किया था और उनके ऊपर अरबों रुपया बकाया हो गया था । जब उनको नोटिस दिए जाने लगे , तो इन कंपनियों ने फरियाद की कि उनका धन्धा ठीक नहीं चल रहा है , उनका शुल्क कम किया जाये और बकाया शुल्क माफ किया जाये । तब भारत सरकार के दूरसंचार मन्त्री श्री जगमोहन , एक सख्त आदमी थे । उन्होंने निजी टेलीफोन कंपनियों की बात मानने से इन्कार कर दिया और बकाया शुल्क जमा नहीं करने पर लाइसेन्स रद्द करने की चेतावनी दी । उन्होंने कहा कि आपका धन्धा नहीं चल रहा है तो बन्द कर दो । लेकिन सरकार को पैसा तो देना पड़ेगा । तब ये कंपनियाँ मिलकर प्रधानमन्त्री कार्यालय में गयीं और वहाँ फरियाद की । प्रधानमन्त्री कार्यालय ने भी उनकी तरफदारी की , किंतु जगमोहन टस से मस नहीं हुए । नतीजा यह हुआ कि जगमोहन को दूरसंचार मन्त्रालय से हटा दिया गया , प्रमोद महाजन को दूरसंचार मन्त्री बनाया गया और निजी कंपनियों की लाइसेन्स शर्तों को बदलकर करीब ५००० करोड़ रुपये की राहत उनको दे दी गई । एक ईमानदार मन्त्री और निजी कंपनियों के बीच संघर्ष में जीत कंपनियों की हुई । इस खेल में कितना कमीशन किसको मिला होगा , इसका अंदाज आप लगा सकते हैं । निजीकरण , उदारीकरण , भूमंडलीकरण के नाम पर यही खेल पिछले डेढ़ दशक से चल रहा है ।
दूसरी ओर , ठीक इसी समय देश के कई हिस्सों में किसानों की आत्महत्याएं भी शुरू हो गयी थीं । खेती एक गहरे संकट में फंस चुकी थी , जिसके लिए स्वयं भूमंडलीकरण की नीतियाँ जिम्मेदार थीं । विश्व बैंक के निर्देश पर खाद , बीज , पानी , डीजल , बिजली आदि की कीमतें लगातार बढ़ाई जा रही हैं । विश्व व्यापार संगठन की नई खुली व्यवस्था के तहत खुले आयात के कारण किसानों की उपज के दाम या तो गिर रहे हैं या पर्याप्त नहीं बढ़ रहे हैं । किसानों पर भारी कर्जा हो गया है । देशी - विदेशी टेलीफोन कंपनियों को ५००० करोड़ रुपये की राहत देने वाली सरकार को यह ख्याल नहीं आया कि किसानों का करजा माफ कर दें या खाद - डीजल - बिजली सस्ता कर दें या समर्थन - मूल्य पर्याप्त बढ़ा दें । यदि कंपनियों का धन्धा नहीं चल रहा था , तो किसान की खेती में भी तो भारी घाटा हो रहा है ! लेकिन किसानों को , गरीबों को या आम जनता को राहत देना अब सर्कार के एज्ण्डे में नहीं है । [ अगली प्रविष्टि - ‘ विदेशियों का हुक्म सिर आँखों पर ‘ ]

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