शनिवार, जनवरी 06, 2007

विदेशी पूंजी से विकास का अन्धविश्वास(४)

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विदेशी पूंजी से विकास का अन्धविश्वास(४)
निजीकरण-उदारीकरण के घोटाले
निजीकरण के पीछे एक और दलील थी कि सरकारी काम में काफी भ्रष्टाचार है । लेकिन जिस तरीके से निजीकरण और उदारीकरण हो रहा है , उसने तो भ्रष्टाचार की सारी मर्यादाएं तोड़ दी हैं ।पिछले कुछ सालों में इतने घोटाले हुए हैं और इतने बड़े घोटाले हुए हैं कि ‘घोटाला’ शब्द के मायने बदल गये हैं। पहले दो-चार लाख रुपए का गबन होता था तो अखबारों के मुखपृष्ट पर बड़ी खबर बनता था । लेकिन अब करोड़ों ही नहीं , अरबों-खरबों रुपयों के घोटाले होते हैं। इन घोटालों में विदेशी कंपनियाँ बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। इस देश को लूटने में वे पूरी तरह शामिल हैं ।
उदारीकरण-वैश्वीकरण के इस दौर का पहला बड़ा घोटाला शेयर घोटाला था , जिसमें हर्षद मेहता-हितेन दलाल-भूपेन दलाल जैसों का हाथ था । लगभग १०,००० करोड़ रुपए के इस घोटाले की जाँच संयुक्त संसदीय समिति ने की थी । इस समिति की रिपोर्ट में बताया गया कि घोटाले में सबसे अग्रणी चार विदेशी बैंक थे - स्टेनचार्ट बैंक , ए एन्ड ज़ेड ग्रिन्ड्लेज़ बैंक , सिटी बैंक और बैंक ओफ़ अमेरिका । इनके खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने की सिफ़ारिश इस समिति ने की थी । लेकिन भारत सरकार ने कुछ विशेष नहीं किया । न उनके लाइसेन्स रद्द किए , न उन पर जुर्माना किया , न उनको भारत छोड़ने को कहा। बल्कि विदेशी बैंकों को और ज्यादा प्रवेश व छूट दी । हमारे देश में , हमारी भूमि पर आकर , विदेशी बैंक घोटाले करें तथा करवाएं और उन पर कार्रवाई न हो - यह सिर्फ हमारे देश में ही सम्भव है। वैश्वीकरण ने हमारे स्वाभीमान को तथा देशहित को कितना गिराया है तथा गुलामी को कितना मजबूत किया है , उसका यह एक और उदाहरण है ।
देश की अस्मिता ,गरिमा तथा हितों के खिलाफ ऐसा ही एक घोटाला मारिशस रूट से हुआ । भारत और मारिशस के बीच एक संधि है , जिसमें एक दूसरे की कंपनियों पर दोहरा करारोपण नहीं करने का समझौता हुआ है । इसका अनुचित लाभ उठाने के लिए , भारत के शेयर बाजार में पूंजी लगाने वाली कई विदेशी कंपनियों ने अपना फर्जी रजिस्ट्रेशन मारिशस में करवा लिया तथा अरबों रुपयों का पूंजी लाभ कर की चोरी द्वारा कमाया।कुछ वर्ष पहले भारत सरकार के आयकर विभाग के कुछ ईमानदार अफसरों ने इन कंपनियों की जाँच शुरु की तो हडकंप मच गया । विदेशी कंपनियों ने धमकी दी कि यदि उनके खिलाफ जाँच नहीं रोकी गयी तो वे अपनी पूंजी वापस ले जाएंगे । शेयर बाजार का सूचकांक नीचे जाने लगा। तब वित्त मन्त्रालय ने हस्तक्षेप किया और आयकर अधिकारियों को आदेश दिया गया कि वे यह जाँच बन्द कर दें ।स्पष्ट है कि भारत सरकार पूरी तरह विदेशी पूंजी और विदेशी कंपनियों की बंधक बन गई है तथा कर चोरी और घोटालों को भी अनदेखा करते हुए उन्हें खुश रखना चाहती है।
सेन्टूर हो्टल बिक्री , माडर्न फूड इंडस्ट्रीज की बिक्री,बाल्को की बिक्री जैसे कई मामले हैं,जिनमें घोटालों की गूँज उठी है । महाराष्ट्र में अमरीकी कंपनी एनरोन के बिजली कारखाने के लिए बिना निविदा के जो समझौता हुआ,उसका घोटाला तो काफ़ी चर्चित रहा है । मध्यप्रदेश में सड़कों के निजीकरण का उदाहरण भी काफ़ी मौजू है । म.प्र. सरकार ने ने बी.ओ.टी. (Bulid-Operate-Transfer) योजना के तहत १५ सड़कों का ठेका निजी कंपनियों को देने का फैसला किया। एशियाई विकास बैंक के कर्ज से बनी इस योजना मेम प्रत्येक सड़क के लिए ५० से ६० प्रतिशत अनुदान सरकार ने दिया ।मान लीजिए,एक सड़क की लागत १०० करोड़ आंकी गई है और उसमें ५५ करोड़ का अनुदान है। लेकिन निश्चित रूप से सड़क की वास्तविक लागत बहुत कम होगी,तथा १०० करोड़ की लागत बढ़ा-चढ़ा कर बताई होगी । यदि वास्तविक लागत ८० करोड़ रु. है,तो उस कंपनी को मात्र २५ करोड़ रुपए ही अपने पास से लगाने होगा ।लेकिन टोल टैक्स की वसूली तो वह पूरी करेगी । याने पैसा सरकार का , कमाई कंपनियों की- निजीकरण का मतलब यही है । म.प्र. की सड़कों कि इस बन्दरबाँट में भी विदेशी कंपनियां पीछे नही रही हैं ।इसी तरह टेलीफोन का ढांचा गांव - गांव तक पहुंचाने का काम सरकारी विभाग ने किया और उस पर काफी सार्वजनिक पैसे का विशाल निवेश हुआ । लेकिन जब टेलीफोन से कमाई का समय आया, यो निजी देशी-विदेशी कंपनियाँ मैदान में आ गयीं ।
[अगली प्रविष्टी- देश हित से ऊपर विदेशी पूंजी ]

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