पानी की जंग , ले.- मॊड बार्लो , टोनी क्लार्क
[लेखक परिचय :
मॊड बार्लो - कैनेडा के सबसे बडे जनसंगठन ‘काउन्सिल ओफ़ कैनेडियन्स’ की अध्यक्षा.वैनकूवर ,टोरेन्टो तथा हेलिफैक्स शहरों में पानी के निजीकरण के विरुद्ध यह संगठन सक्रिय है.पानी के निगमीकरण पर टोनी क्लार्क के साथ लिखी गयी चर्चित पुस्तक ‘ब्लू गोल्ड’ की लेखिका.
टोनी क्लार्क - लोकतांत्रिक समाज परिवर्तन के संघर्ष्हेतु जन आन्दोलनों प्रशिक्षित करने वाली संस्था पोलारिस इन्स्टीट्यूट के निदेशक.वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन के नेता. ]
स्कूल में हमें पढाया जाता है कि पृथ्वी का जल-चक्र एक बन्द प्रणाली है . अर्थात वर्षा और वाष्पीकरण द्वारा सतत रूप बदलता पानी पृथ्वी के वातावरण में जस का तस बना हुआ है. न सिर्फ़ पृथ्वी के निर्माण के समय हमारे ग्रह पर जितना पानी था वह बरकरार है अपितु यह यह पानी वह ही है. जब कभी आप बरसात में टहल रहे हों तब कुछ रुककर कल्पना कीजिए - बूंदें जो आप पर गिर रही हैं कभी डिनासार के खून के साथ बहती होंगी अथवा हजारों बरस पहले के बच्चों के आंसुओं में शामिल रही होंगी.
पानी की कुल मात्रा बरकरार रहेगी फिर भी यह मुमकिन है कि इन्सान उसे भविष्य में अपने और पृथ्वी के उपयोग के लायक न छोडे.पीने के पानी के संकट की कई वजह हैं.पानी की खपत हर बीसवें साल में प्रति व्यक्ति दुगुनी हो जा रही है तथा आबादी बढने की तेज रफ़्तार से यह दुगुनी है. अमीर औद्योगिक देशों की तकनीकी तथा आधुनिक स्वच्छता प्रणाली ने जरूरत से कहीं ज्यादा पानी के उपयोग को बढावा दिया है.व्यक्तिगत स्तर पर पानी के उपयोग की इस बढोतरी के बावजूद घर - गृहस्थी तथा नगरपालिकाओं में मात्र दस फ़ीसदी पानी की खपत होती है.
दुनिया के कुल ताजे पानी की आपूर्ति का २० से २५ प्रतिशत उद्योगों द्वारा इस्तेमाल होता है.उद्योगों की मांग भी लगातार बढ रही है.सर्वाधिक तेजी से बढ रहे कई उद्योग पानी की सघन खपत करते हैं.मसलन सिर्फ़ अमरीकी कम्प्यूटर उद्योग द्वारा सालाना ३९६ अरब लीटर पानी का उपयोग किया जाएगा.
सर्वाधिक पानी की खपत सिंचाई में होती है.मानव द्वारा प्रयुक्त कुल पानी का ६५ से ७० फ़ीसदी हिस्सा सिंचाई का है.औद्योगिक खेती (कम्पनियों द्वारा खेती) में निरन्तर अधिकाधिक पानी की खपत के तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं.कम्पनियों द्वारा सघन सिंचाई वाली खेती के लिए सरकारों तथा करदाताओं द्वारा भारी अनुदान भी दिया जाता है . अनुदान आदि मिलने के कारण ही कम सिंचाई के तौर-तरीके के प्रति इन कम्पनियों को कोई आकर्षण नही नही होता.
जनसंख्या वृद्धि तथा पानी की प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि के साथ - साथ भूतल जल-प्रणालियों के भीषण प्रदूषण के कारण शेष बचे स्वच्छ और ताजे पानी की आपूर्ति पर भारी दबाव बढ जाता है.दुनिया भर में जंगलोंका विनाश , कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से प्रदूषण तथा ग्लोबल वार्मिंग के सम्मिलित प्रभाव से पृथ्वी की नाजुक जल प्रणाली पर हमला हो रहा है.
दुनिया में ताजे पानी की कमी हो गयी है.वर्ष २०२५ में विश्व की आबादी आज से से २.६ अरब अधिक हो जाएगी.इस आबादी के दो-तिहाई लोगों के समक्ष पानी का गंभीर संकट होगा तथा एक तिहाई के समक्ष पूर्ण अभाव की स्थिति होगी.तब पानी की उपलब्धता से ५६ फ़ीसदी ज्यादा की मांग होगी.
दिनोंदिन बढती मांग और संकुचित हो रही आपूर्ति के कारण बडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की रुचि इस क्षेत्र में जागृत हुई है जो पानी से मुनाफ़ा कमाना चाहती हैं.विश्व-बैंक द्वारा पानी-उद्योग को एक खरब डॊलर के उद्योग के रूप में माना जा रहा है तथा बढावा दिया जा रहा है.विश्व बैंक द्वारा सरकारों पर दबाव है कि वे जल-आपूर्ति की सार्वजनिक व्यवस्था निजी हाथों में सौंप दें.पानी इक्कीसवीं सदी का ‘नीला सोना’ बन गया है.
उदारीकरण ,निजीकरण,विनिवेश आदि दुनिया के आर्थिक दर्शन पर हावी हैं.यह नीतियां ‘वाशिंगटन सहमति’ के नाम से जानी जाती हैं. पानी का निजीकरण इन नीतियों से मेल खाता है.यह दर्शन सरकारों को सामाजिक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी तथा संसाधनों के प्रबन्धन से मुंह मोड लेने की सलाह देता है ताकि निजी क्षेत्र उनका स्थान ले लें.इस मामले में यह ‘सबके लिए पानी’ की प्राचीन सोच पर सीधा हमला है.
पानी के व्यवसाय से जुडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथ में सबसे जरूरी औजार विश्व व्यापार समझौते मुहैय्या कराते हैं.विश्व व्यापार संगठन और नाफ्टा (उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार सन्धि) जैसे बहुराष्ट्रीय प्रबन्ध निकाय पानी को व्यापार की वस्तु के रूप में परिभाषित करते हैं.नतीजन जो नियम पेट्रोल और प्राकृतिक गैस के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करते हैं वे पानी पर भी लागू हो गये हैं.इन अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के तहत कोई भी देश पानी के निर्यात पर यदि प्रतिबन्ध लगाता है अथवा उसे सीमित करता है तो वह देश विश्वव्यापार संगठन की नाराजगी और निन्दा का भागी होगा . पानी के आयात से इन्कार किया जाना भी प्रतिबन्धित होगा.नाफ्टा सन्धि की एक धारा के तहत यदि कोई देश अपने प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात शुरु करता है तो वह उस पर तब तक रोक नहीं लगा सकता जब तक वह संसाधन समाप्त न हो जाए.[ जारी ]
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