दोषसिद्ध रंगभेद
किन्हीं उपभोक्तावादी उत्पाद की निर्माता कम्पनी की मंशा यदि पूरी दुनिया के बाजार पर छा जाने की हो तब क्या वे रंगभेद का पालन कर सकती हैं ? सरसरी तौर पर सोचने पर लगेगा कि वे किसी भी समूह से भेद-भाव करने से बचने का प्रयास करेंगी . लेकिन ऐसा सोचना सच्चाई से परे है.
कोका - कोला कम्पनी के अटलान्टा , अमेरिका स्थित मुख्यालय के काले कर्मचारियों ने १९९९ में कम्पनी के ख़िलाफ़ रंग भेद का मुकदमा दाखिल किया . अपने दावे को साबित करने के लिए इन कर्मचारियों ने दमदार आंकडे और किस्से प्रस्तुत किए . मसलन १९९८ में अफ़्रीकी - अमेरिकी कर्मचारियों की औसत तनख्वाह ४५,२१५ डॊलर थी जबकि गोरे कर्मचारियों की औसत तनख्वाह ७२,०४५ डॊलर थी . हांलाकि अफ़्रीकी-अमेरिकी कर्मचारी कुल संख्या का १५ फ़ीसदी हैं पर्न्तु सर्वोच्च वेतनमान में उनका प्रतिनिधित्व नगण्य है . कोका - कोला कम्पनी में पदोन्नति के लिए मूल्यांकन में व्यवस्थापकों के व्यक्तिपरक विवेक की अत्यधिक गुंजाइश की छूट है , जिसके फलस्वरूप मूल्यांकन में रंगभेद प्रकट होता है . इस मूल्यांकन पद्धति के कारण ही ऊपर के वेतनमानों में काले लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है . कोका - कोला के अधिकारी कई महीनों तक इन आरोपों को नकारते रहे .
अप्रैल , २००० में तीस मौजूदा व पूर्व कर्मचारियों ने अपने मुकदमे के प्रचार तथा विवाद के न्यायपूर्ण निपटारे की मांग के साथ कम्पनी के अटलांटा स्थित मुख्यालय से एक बस पर सवार हो कर ‘ न्याय - यात्रा ‘ निकाली .यात्रा विलिमिंग्टन तक की थी जहां कम्पनी के शेयरधारकों की वार्षिक बैठक होने वाली थी . कोका - कोला कम्पनी ने अन्तत: १९ करोड ३० लाख डॊलर पर समझौता कर लिया . अमेरिकी रंगभेद - मुकदमों के इतिहास में यह सबसे बडी समझौता राशि है . समझौते के तहत पीडित कर्मचारियों को ११ करोड ३० लाख डॊलर , काले कर्मचारियों के वेतन बढाने के लिए ४ करोड ३५ लाख डॊलर , कम्पनी के नियुक्ति एवं पदोन्नति कार्यक्रम के मूल्यांकन व नियंत्रण के मद में ३ करोड ६० लाख डॊलर तथा वादी के कानूनी खर्च के मद में दो करोड डॊलर देने पडे .
दक्षिण अफ़्रीका में जब रंगभेद चरम पर था तथा उस पर दुनिया के सभी देशों ने ‘ व्यापारिक प्रतिबन्ध ‘ लगा दिए थे तब भी पेप्सीको व कोका - कोला द्वारा अपने पेय वहां भेजे जा रहे थे . बर्मा में लोकतंत्र बहाली आन्दोलन की नेता आंग सांग सू की द्वारा तानाशाही शासन का व्यावसायिक बहिष्कार करने की अपील के तहत कुछ संगठनों ने अभियान चलाया था . पेप्सीको द्वारा लम्बे समय तक बर्मा में व्यवसाय जारी रखने को मुद्दा बना कर उसके उत्पादों के बहिष्कार का अभियान भी इन संगठनों ने चलाया था . कम्पनी ने बदनामी से बचने के लिए अमेरिकी विदेश नीति का हवाला दे कर बर्मा से अन्ततोगत्वा कामकाज समेट लिया .
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