गुरुवार, नवंबर 30, 2006

गीता पर गांधी

” आध्यात्मिक सत्य को समझाने के लिए कई बार भौतिक दृष्टान्त की आवश्यकता पडती है.यह भाइयों के बीच लड़े गए युद्ध का वर्णन नहीं है बल्कि हमारे स्वभाव में मौजूद ‘भले’ और ‘बुरे’ के बीच की लडाई का वर्णन है….मैं दुर्योधन और उसके दल को मनुष्य के भीतर की बुरी अन्त:प्रेरणा तथा अर्जुन और उसके दल को उच्च अन्त:प्रेरणा मानता हूं.हमारी अपनी काया ही युद्ध-भूमि है . इन दोनों खेमों के बीच आन्तरिक लडाई चल रही है और ऋषि-कवि उसका वर्णन कर रहे हैं.अन्तर्यामी कृष्ण,एक निर्मल हृदय में फुसफुसा रहे हैं . ”
” इति श्रीमद्भगवद्गीता उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे —— नाम —अध्याय:”
हर अध्याय के अन्त में उक्त अध्याय का नाम,यथा अर्जुनविषादयोग,सांख्ययोग,कर्मयोग,ग्यानकर्मसंन्यासयोग,…. तथा अध्याय संख्या का जिक्र है. अलग,अलग संस्करणों में अध्यायों के नाम में अन्तर मिलते हैं,परन्तु ‘पुष्पिका’ में अन्तर नहीं रहता.यह पुष्पिका गौरतलब है.” इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के बीच योग के विग्यान या ब्रह्मविद्या जो उपनिषद के ब्रह्म का हिस्सा है और जिसे भगवान द्वारा गया गीत कहा जा सकता है का अध्याय समाप्त हुआ.’उपनिषद’ का शाब्दिक मूल,’जो शिष्य द्वारा गुरु के चरणों में बैठ कर सीखा जाय.इसे सांसारिक बन्धनों से मुक्ति के ग्यान के रूप में भी इसे समझा जा सकता है.इस प्रकार एक अर्थ में ब्रह्मविद्या और उपनिषद पर्यायवाची हुए.
गीता, इसप्रकार जीवन की कला है.
साम्प्रदायिक या हिन्सा में विश्वास रखने वालों को पहले अध्यात्म का नाश करना पडता है.

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