कचरा खाद्य : मानकों का कचरा
कचरा खाद्य उत्पादों को दुनिया भर में बेचते रहने के लिए कोला कम्पनियों के लिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि उनकी दखल और साँठ गाँठ राजनीति , विश्व स्वास्थ्य संगठन , विग्यापन और टेलीविजन कम्पनियों , विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों , बैंकों , कोडेक्स जैसी खाद्य मानक निर्धारित करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं , रसायन कम्पनियों तथा अन्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से हो . कोका - कोला और पेप्सीको ने अपनी करतूतों को बदस्तूर जारी रखने के लिए ऐसी संस्थाओं से औपचारिक सम्बन्ध बनाए हैं . मनुष्य और प्रकृति के शोषण व दोहन की प्रक्रिया में इन गठजोड़ों का परस्पर सहयोग रहता है . इस मिलीभगत के परिणाम आखिरकार आम आदमी के अहित में होते हैं तथा इनसे कम्पनियों के मुनाफ़े का इजाफ़ा होता है . कुछ उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाएगा .
विश्व स्वास्थ्य संसद ( विश्व स्वास्थ्य संगठन की आम सभा ) ने १९ अप्रैल २००४ को ‘ आहार , शारीरिक गतिविधि और स्वास्थ्य पर अन्तर्राष्ट्रीय रणनीति का मसविदा ‘ पेश किया है . कचरा - खाद्य और पेय उद्योग तथा विग्यापन कम्पनियाँ इस लचर मसविदे से खुश हैँ क्योंकि यह सदस्य देशों के बच्चों को लक्ष्य कर बनाए गए कचरा खाद्य के विग्यापनों पर प्रतिबन्ध लगाने की नीति की सिफ़ारिश नहीं करता है . टेलिविजन कम्पनियाँ इस बात पर गदगद होंगी कि इस नीति में मोटापा बढ़ाने में टेलिविजन की भूमिका का जिक्र नही है . प्रतिदिन खुराक में चीनी की खपत कुल कैलोरी खपत का दस फ़ीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए , यह कहने से बचा गया है . फलों और सब्जियों के उत्पादन और बिक्री को बढ़ावा देने की बात अमेरिका और कचरा खाद्य उद्योग के विरोध के चलते इस नीति में शामिल नहीं की गयी है . अंतर्राष्ट्रीय रणनीति में यह जरूर शामिल करना पड़ा है कि खाद्य और पेय विग्यापनों द्वारा बच्चों की अनुभवहीनता और भोलेपन का दोहन नहीं होना चाहिए तथा अस्वास्थ्यकर खुराक - आदतों को प्रोत्साहित करने वाले विग्यापन-संदेशों को बढ़ावा न दिया जाए . सदस्य देशों की सरकारों से यह जरूर कहा गया है कि ‘ स्कूलों में ज्यादा चीनी , ज्यादा नमक और ज्यादा वसा वाले खाद्यों की उपलब्धता को सीमित किया चाहिए ‘ .
खाद्य मानकों के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारण हेतु गठित संगठन ‘ कोडेक्स एलिमेन्टारियस ‘ में यह कम्पनियाँ अमेरिका का प्रतिनिधित्व करती रही हैं . नतीजन इन पेयों में प्रयुक्त अखाद्य फॊस्फोरिक एसिड को अनुमति मिली हुई है .
कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भूभौतिकी विभाग को कोका - कोला कम्पनी ने एक शोध अनुदान दिया है . इस ‘ शोध ‘ द्वारा कम्पनी पूर्वी उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल की उपलब्धता और पानी की विभिन्न सतहों की गहराइयों की जानकारी प्राप्त करेगी . भारत में लगभग पूरी तरह मुफ़्त पानी प्राप्त करने वाली कम्पनियाँ इस प्रकार की शोध योजनाओं की सूचनाओं के आधार पर नए संयंत्र लगा कर विस्तार करती हैं . प्लाचीमाड़ा और मेंहदीगंज में शुरु हुए आन्दोलनों के कारण भूगर्भ जल के दोहन का मुद्दा चर्चा का विषय बना है तथा संयुक्त संसदीय समिती तथा सर्वोच्च न्यायालय में भी यह चर्चा का मसला है .
इन दोनों कम्पनियों की करतूतें विश्वव्यापी हैं . यह कम्पनियाँ उपभोक्तावादी संस्कृति की प्रतीक बन चुकी हैं . गरीब देशों में प्राकृतिक संसाधन के दोहन और श्रम के शोषण द्वारा यह अपनी लूट की मात्रा को बढ़ा लेती हैं .
इनके विरोध का वैश्वीकरण हो , यह वक्त का तकाजा है .
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