कोला कम्पनियों की करतूतें
लेखक : अफ़लातून
”उपभोग जीवन की बुनियादी जरूरत है . इसके बगैर न जीवन सम्भव है और न वह सब जिससे हम जीवन में आनन्द का अनुभव करते हैं.
इसके विपरीत ऐसी वस्तुएं , जो वास्तव में मनुष्य की किसी मूल जरूरत या कला और ग्यान की वृत्तियों की दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से प्रचार के द्वारा उसके लिए जरूरी बना दी गयी हैं ,उपभोक्तावादी संस्कृति की देन हैं . ”
- सच्चिदानन्द सिन्हा
कोला पेय पूरी तरह उपभोक्तावादी संस्कृति की देन हैं . पूरी तरह अनावश्यक और नुकसानदेह होने के बावजूद इनका एक बहुत बडा बाजार है . वर्ष २००२ में कोका - कोला कम्पनी की शुद्ध आय ३०५ करोड डॊलर थी और पेप्सीको की १९७ करोड डॊलर . शुद्ध आय में इन कम्पनियों के प्रमुखों को मिलने वाली धनराशि शामिल नही होती . शेयर , बोनस तथा अन्य मुआवजों को जोडने पर सन १९९८ के पेप्सीको प्रमुख रोजर एनरीको की वार्षिक आमदनी ११,७६७,४२१ डॊलर थी जबकि उनका ‘वेतन’ मात्र एक डॊलर था . अपने - अपने वेतन या मजदूरी के बल पर इस रकम की बराबरी करने में अमरीकी राष्ट्रपति को ५८ वर्ष लगते,औसत अमरीकी मजदूरी पाने वाले अमरीकी मजदू ४६१ वर्ष लगते तथा अमेरिका न्यूनतम मजदूरी पाने वाले मजदूर को १०९८ वर्ष लग जाते . १९९१ में कोका कोला के प्रमुख डगलस आईवेस्टर की वार्षिक आय ३३,५९३,५५२ डॊलर थी.अमेरिका में न्यूनतम मजदूरी पाने वाले मजदूर को यह रकम कमाने में ३१३६ वर्ष लगते ,औसत मजदूरी पाने वाले को १३१७ वर्ष तथा अमरीकी राष्ट्रपति को १६७ वर्ष लगते . कोका - कोला के प्रमुख डगलस डाफ़्ट को हजारों कर्मचारियों की छंटनी करने के पुरस्कारस्वरूप ३० लाख डॊलर बोनस के रूप में दिए गये.समाजवादी चिन्तक सच्चिदानन्द सिन्हा के शब्दों में ‘उदारीकरण के आर्थिक दर्शन में मजदूरों की छंटनी औद्योगिक सक्षमता की अनिवार्य शर्त है’ . भारत में इन दोनों कम्पनियों के उत्पादो के प्रचार हेतु बनी चन्द मिनट की एक व्ग्यापन फिल्म का खर्च करोडों रुपये में आता है . इनमें काम करने वाले क्रिकेट खिलाडियों और सीने कलाकारों को कुच करोड रुपए तक मिल जाते हैं .जाहिर है इन कम्पनियों की शुद्ध आय इन खर्चों को काटने के बाद की है .इन पेयों की जो कीमत ग्राहकों से वसूली जाती है उसमें कम्पनी की आय और खर्च दोनों शामिल हैं.
पोषण के हिसाब से निकम्मे बल्कि नुकसानदेह इन उत्पादों के विपणन की रणनीति आक्रामक होती है . हाल के वर्षों में बच्चों के लिए लेखिका जे . के . राउलिंग द्वारा लिखी गई सबसे लोकप्रिय हैरी पॊटर पुस्तकमाला पर आधारित फिल्मों के एकमेव विपणन अधिकार के लिए कोका - कोला ने टाइम वार्नर के आनुषंगिक समूह वार्नर ब्रदर्स को १५ करोड डॊलर दिए . स्पष्ट तौर पर बच्चों को और अधिक मात्रा में अपना शीतल पेय पिलाने के लिए फांसने के मकसद से ही यह निवेश किया गया . जार्ज वाशिंग्टन विश्वविद्यालय के मेडिकल सेण्टर की बाल चिकत्सक डॊ . पेशन्स व्हाइट के अनुसार ‘कोका - कोला ने हैरी पॊटर के जादू के सहारे अपने पेयों की खपत बढाने का घृणित काम किया है . इससे मोटापे से पीडित किशोरों की संख्या दुगुनी हुई है ‘ . उनके तथा अन्य चिकित्सकों के अनुसार बचपन में मोटापे की यह महामारी अन्तत: मधुमेह की महामारी का रूप ले लेगी . बच्चों और किशोरों में शीतल पेयों की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए इन दोनों कम्पनियों द्वारा कैनाडा और अमेरिका के पब्लिक ( अमेरिका में सरकारी स्कूलों को ही पब्लिक स्कूल कहा जाता है . भारत के पब्लिक स्कूलों से विपरीत . ) स्कूलों से अनुबन्ध काफी चर्चित रहे हैं . अतिरिक्त आमदनी के लिए स्कूलों ने यह अनुबन्ध किए हैं . इन दोनों कम्पनियों द्वारा शिक्षा के प्रयासों को ‘बढावा’ देने की डींग हांकने के पीछे मुनाफा कमाने और बच्चों में अपने पेयों की लत डालना ही असली मकसद होता है . उदाहरण के तौर पर एक क्षेत्र के अनुबन्ध को लें . कोलेरैडो स्प्रिंग्स स्कूल डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक स्कूल को इनमें से एक कम्पनी प्रतिवर्ष ३,००० से २५,००० डॊलर देगी बशर्ते यह स्कूल वर्ष में ७०,००० पेटियां शीतल पेय की बिक्री कर ले . प्रथम वर्ष बीतने के बाद यह स्कूल जब २१,००० पेटियां ही बेच पाया तब स्कूल बोर्ड ने सघन बिक्री अभियान चलाया जिसके तहत प्राचार्यों द्वारा क्लास के अन्दर पेय पीने की अनुमती दी गयी .
अमेरिकी कषि विभाग के सर्वेक्षणों के अनुसार २० वर्ष पहले किशोरों में दूध की खपत इन पेयों से दुगुनी थी ,अब पेयों की खपत दूध से दुगुनी हो गई है .
स्कूलों द्वारा किए गए अनुबन्धों की आलोचना और उसका विरोध भी हुआ है . कैनाडा की स्तम्भकार मार्गरेट वैन्ट अपने एक लेख (टोरेन्टो ग्लोब एन्ड मेल,२७ नवम्बर,२००३) में लिखती हैं,’चले आओ, लडके और लडकियों , अपने लिए शीतल पेय ले जाओ . इसके लिए व्यायामशाला के ठीक सामने एक चमचमाती नई मशीन लगा दी गयी है . तुम्हारे दांत इनसे जरूर सड जाएंगे , जितने तुम मोटे हो उससे कुछ अधिक फैल जाओगे , और साथ में मिलेगी एक तगडी झनझनाहट . मगर यहां इन सब से ज्यादा जरूरी चीज़ दांव पर लगी है-पैसा ! तुम्हारा स्कूल पैसों का भूखा है और इसीलिए हमने कम्पनी से एक धांसू व प्रेरणादायक अनुबन्ध कर लिया है . अपने छात्रों के बीच इन्हें बिक्री का एकाधिकार दे कर हमें तगडा बोनस भी मिलेगा . बिक्री का ३० प्रतिशत तो हमे मिलेगा ही , निर्धारित लक्ष्य पूरा करने पर भी बोनस मिलेगा . जितना तुम पीओगे उतना पैसा हम कमाएंगे ‘ .
वे आगे लिखती हैं, ‘ कैनेडा के स्कूल बोर्डों द्वारा इन कम्पनियों से किए गए इन फाएदे के सौदों के बारे में शायद तुम सुन चुके होगे . हमें तो इनके पूरे विवरण मिल गये हैं . ओन्टारियो ( जिसके अन्तर्गत कई स्कूल आते हैं) पील स्कूल बोर्ड को १० साल के अनुबन्ध से अब तक ५५ लाख डॊलर मिल चुके हैं . एक अनुमान के अनुसार अमेरिका के ४० प्रतिशत स्कूल बोर्डों ने शीतल पेय अनुबन्ध किये हैं ‘ .
कैनेडा की शिक्षा मंत्री क्रिस्टी क्लार्क ने ‘वैनकूवर सन ‘ को बताया (१८ नवम्बर,२००३) ‘ मेरे पास फोन-कॊलों और ई-मेलों की बाढ-सी आ गयी है तथा सडक पर रोक कर भी लोग मुझसे कह रहे हैं कि वे चाहते हैं कि उनके बच्चों के स्कूलों को ‘कचरा खाद्य’ (जंक फ़ूड) से मुक्त कराया जाए . ब्रिटिश कोलम्बिया स्कूल ट्रस्टी एसोशियेशन के अध्यक्ष गार्डेन ने कहा कि छात्रों को क्या बेचा जाए इसका फैसला स्थानीय शिक्षकों को लेना चाहिए न कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को .
विरोध के मुखर स्वरों प्रभावित होकर इन कम्पनियों ने ६ जनवरी, २००४ को घोषणा की कि आगामी सत्रारम्भ से कैनेडा के प्राथमिक एवं माध्यमिक पाठशालाओं में शीतल पेयों की बिक्री रोक देंगे . हाई स्कूलों पर यह यह लागू नहीं किया गया .
जनवरी २००४ में अमेरिकी बाल-रोग अकादमी ने ‘स्कूलों में शीतल पेय ‘ विषयक एक नीति वक्तव्य जारी किया है .अकादमी की शोध -पत्रिका ‘पीडियाट्रिक्स’ में यह प्रकाशित किया गया है . बच्चों के स्वास्थ्य पर शीतल पेयों के प्रभाव के सन्दर्भ में यह एक महत्वपूर्ण वक्तव्य है.[नीति वक्तव्य के प्रमुख अंश अगली प्रविष्टि में ]
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