पानी की जंग ( गतांक से आगे )
विश्वव्यापार संगठन के सेवाओं के व्यापार से सम्बन्धित नियम भी जल आपूर्ति के निजीकरण को बढावा देंगे.इन नियमों के तहत सभी देशों पर न सिर्फ़ सार्वजनिक जल-प्रणालियों से सरकारी नियंत्रण हटाने और निजीकरण करने का दबाव होगा अपितु किसी शहर की जल वितरण प्रणाली यदि किसी विदेशी कम्पनी के हाथों चली जाती है तो उसे वापस जनता के नियंत्रण में लेना विश्वव्यापार संगठन द्वारा भारी जुर्माना न्योतना होगा.
पानी के निजीकरण की मुहिम की रहनुमाई यूरोप शित तीन विशाल बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कर रही हैं - विवेन्डी (फ़्रान्स ) , सुवेज (फ़्रान्स) , आर.डब्ल्यू.ई (जर्मनी).वर्ष २००१ में पानी से प्राप्त इनकी आमदनी क्रमश: ११.९० अरब , ८.८४ अरब तथा २.८ अरब डॊलर थी.इन तीनों कम्पनियों ने दुनिया भर के पानी व्यापार पर हावी होने के लिए छोटी - छोटी प्रतिद्वन्द्वी कम्पनियों को खरीद लिया है.शुरु में तीसरी दुनिया के पानी के संकट का तारनहार बनने की आस में तथा प्रयास में इन कम्पनियोंने सार्वजनिक जल वितरण व्यवस्था पर कब्जा जमाने की दूरगामी रणनीति बनाई.परन्तु तीसरी दुनिया के देशों में इनकी कोशिशों को मुंह के बल गिरना पडा और उनके इस अभियान की गाडी पटरी से उतर गयी.
ब्वेनॊस एरिस (अर्जेन्टीना की राजधानी) का प्रकरण विशेष रूप से सबक देने वाला था.तीसरी दुनिया में पानी के निजीकरण की यह महत्वपूर्ण योजना थी.सुवेज ने अपनी आनुषंगिक कम्पनी अगुआस अर्जेन्टीनास के द्वारा इस शहर की जल-आपूर्ति तथा सीवर व्यवस्था को अधिगृहीत किया.पुरानी पड चुकी वितरण व्यवस्था के नवीनीकरण हेतु सार्वजनिक क्षेत्र में धन का अभाव रहता है तथा निजी कम्पनियांकमी को पूरा कर सकती हैं-निजीकरण के पक्ष में यह तर्क आम तौर पर दिया जाता है.इस मामले में सुवेज कम्पनी के निजीकरण के प्रयोग हेतु आवश्यक एक अरब डोलर की ९७ फ़ीसदी पूंजी के हिस्से की पूर्ति विश्व बैक,अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष व अन्य छोटे बैंकों ने की.जल-आपूर्ति व सीवर व्यवस्था में मामूली बढोतरी के बावजूद सुवेज कम्पनी दोनों कार्यों में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नही कर सकी.यह गौरतलब है कि ९० के दशक के बीच के वर्षों में कम्पनी ने सालाना २५ फ़ीसदी मुनाफ़ा भी कमा लिया.हाल ही में सुवेज ने अर्जेन्टीना छोडने की घोषणा कर दी है.कम्पनी ने कहा है कि उस देश के मुद्रा संकट के कारण उसे कम मुनाफ़ा मिल रहा है.निजीकरण की योजनाएं जोहानस्बर्ग और मनीला में भी लडखडाई हैं.गंगा नदी से निकली गंग नहर से नई दिल्ली के सोनिया विहार में जल-आपूर्ति की योजना भी इसी सुवेज के हवाले है.सर्वाधिक प्रसिद्ध मामला दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया के एक बडे शहर कोचाबाम्बा का है.१९९९ में बेकटेल कम्पनी द्वारा इस शहर की जल -आपूर्ति की बागडोर संभालने के बाद पानी का रेट इतना बढ गया कि कई लोगों को अपनी आमदनी का बीस फ़ीसदी पानी के लिए खर्च करना पडा.नागरिकोख द्वारा इस फ़ैसले का तीव्र प्रतिकार हुआ.पुलिस दमन में छ; लोगों की मृत्यु हुई.अन्तत: सरकार ने बेकटेल कम्पनी से हुए करार को खारिज कर दिया और कहा कि यदि वह उस देश में टिकी रही तो उसकी सुरक्षा की गारण्टी लेने में सरकार असमर्थ होगी.
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