रविवार, अगस्त 12, 2007

साल-भर की चिट्ठेकारी

 

 

    यह चिट्ठा १५ अगस्त  २००६ को शुरु किया था । दिसम्बर २००६ तक 'नारद' पर नहीं लिया गया था इसलिए तब सर्च इंजन अथवा अन्य चिट्ठों पर की गयी मेरी टिप्पणियों अथवा ईमेल से मेरे द्वारा भेजी गयी कड़ियों से ही पाठक पहुँचते थे । दिसम्बर २००६ तक केवल ग्यारह टिप्पणियाँ मिलीं , उसके बाद ३३० । कुल प्रविष्टियाँ १२५ हैं। इसके अलावा हिन्दी में 'शैशव' तथा 'यही है वह जगह' नामक दो चिट्ठे और हैं ,जिनका लेखा-जोखा उन पर शीघ्र दूँगा । 'यही है वह जगह' में  ३९ प्रविष्टियाँ और टिप्पणियाँ १३८ तथा 'शैशव' में ६४ प्रविष्टियाँ और १८७ टिप्पणियाँ हैं।इन दोनों चिट्ठों के 'नारद' पर आने में भी करीब चार महीने लग गए ।

    यहाँ 'समाजवादी जनपरिषद' की तमाम प्रविष्टियों के शीषक उनकी कड़ियों-सहित दे रहा हूँ। प्रविष्टियों का वर्गीकरण इस अनुक्रमणिका के लिए किया है। काश, प्रविष्टियाँ छापते वक्त यही वर्गीकरण रखा होता !

   वर्डप्रेस की आँकड़ों के हिसाब से मात्र १३,१९५ बार इन्हें देखा गया । किसी एक दिन में देखने वालों की अधिकतम  तादाद मात्र १९१ थी । साल भर के रियाज का नतीजा असन्तोषजनक लगता है । मेरी चिट्ठेकारी पर आप लोगों की बेबाक राय का खैरम-कदम !

 कविता

आगाज़ :भवानीप्रसाद मिश्र, मनुष्यता के मोर्चे पर : राजेन्द्र राजन , उदय प्रकाश की कविता : एक भाषा हुआ करती है , युद्ध पर तीन कविताएँ , एक अनुवाद ,

शिव कुमार ‘पराग’ के दोहे(साभार-’देश बड़ा बेहाल’) ,

हत्यारों का गिरोह ( राजेन्द्र राजन ) , अखबारनवीसी - सलीम शिवालवी , रघुवीर सहाय : तीन कविताएँ ,

वैश्वीकरण - निजीकरण

पानी की जंग पर राष्ट्रीय सम्मेलन , गुलामी का दर्शन : किशन पटनायक , पानी की जंग , ले.- मॊड बार्लो , टोनी क्लार्क ,

पानी की जंग ( गतांक से आगे ) , पानी की जंग : गोलबन्दिय़ां , शैशव में अतिक्रमण , स्कूलों में शीतल पेय , श्रमिकों की हत्या - उत्पीडन , दोषसिद्ध रंगभेद , कचरा खाद्य : मानकों का कचरा , जंगल पर हक़ जताने का संघर्ष , आदिवासियों ने दिखाई गांधीगिरी , कुछ और विशेष क्षेत्र : ले. राजकिशोर ( सामयिक वार्ता में ) , भारत भूमि पर विदेशी टापू : , ,   , विदेशी पूंजी से विकास का अन्धविश्वास , विदेशी पूंजी से विकास का अन्धविश्वास (२) , , ,  क्या वैश्वीकरण का मानवीय चेहरा संभव है ? : सुनील : , , , , , , प्लाचीमाडा की महिला नेता मायलम्मा , वाल मार्ट पर लिंगभेद का बड़ा मामला , बातचीत के मुद्दे : किशन पटनायक ,

वैश्वीकरण : देश रक्षा और शासक पार्टियाँ : किशन पटनायक

जगतीकरण क्या है ? : किशन पटनायकआर्थिक संप्रभुता क्या है ? : किशन पटनायक , बैंक बीमा और पेटेंट : किशन पटनायक , चीन और विदेशी पूंजी : किशन पटनायक , आयात - निर्यात और मीडिया : किशन पटनायक , ‘दो तिहाई आबादी को होगी पानी की किल्लत’ , ये परदेसी जिन्दगी : आप्रवासियों के लिए निजी जेल : दीपा फर्नाण्डीज़ : प्रस्तुति - अफ़लातून , निजी जेल कंपनियों के कारनामे : दीपा फर्नाण्डीज़ : प्रस्तुति - अफ़लातून ,

उपभोक्तावादी संस्कृति :गुलाम मानसिकता की अफ़ीम : सच्चिदानन्द सिन्हा , , , , , , , , , १० , ११

नन्दीग्राम की शहादत से उठे बुनियादी सवाल , क्या, फिर इन्डिया शाइनिंग ? , सेज विरोधी आन्दोलन की नन्दीग्राम में आंशिक सफलता

‘ गन - कल्चर ‘ पर चर्चागांधी से प्रभावित किसान नेता के बहाने ,

व्यक्तित्व , श्रद्धान्जलि

 

रामगोपाल दीक्षित , भाषा पर गाँधी , भाषा पर गांधी जी : एक बहस , भाषा पर गांधी और लोहिया भी , क्रांतिकारी दिनेश दासगुप्त :ले. अशोक सेकसरिया , गुलामी का दर्शन : किशन पटनायकगांधी - नेहरू चीट्ठेबाजी (पूर्णाहुति , ले. प्यारेलाल से) , गांधी पर , राष्ट्रपिता : गुरुदेव ने नहीं नेताजी ने कहा , गांधी पर बहस : प्रियंकर की टिप्पणियां , डॊ. भीमराव अम्बेडकर : परिनिर्वाण दिवस पर , इन्टरनेट पर गांधी , गांधी - सुभाष : भिन्न मार्गों के सहयात्री ,ले. नारायण देसाई : भाग ( २ ) , प्लाचीमाडा की महिला नेता मायलम्मा ,‘विकास’ बनाम वू पिंग का व्यक्तिगत सत्याग्रह ,

गांधी से प्रभावित किसान नेता के बहाने

 

साम्प्रदायिकता/सद्भावना , जाति , महिला

बनारस तुझे सलाम , गांधी पर , गांधी गीता और गोलवलकर , गीता पर गांधी , ' परिचर्चा ' से साभार , ' परिचर्चा ' की जारी बहस , राधा- कृष्णों की फजीहत , जे.पी. और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , ‘आरक्षण की व्यवस्था एक सफल प्रयोग है’ ,महिला दिवस का ऐलान ,  हम इस आवाज का मतलब समझें , ‘राष्ट्र की रीढ़’ : स्वामी विवेकानन्द , ईसाई और मुसलमान क्यों बनते हैं ? - स्वामी विवेकानन्द"हिटलर के नाजियों और मुसोलिनी के फासिस्टों ने भी यही किया था"तीन बागी गायक , गोस्वामी तुलसीदास का छद्म सेक्युलरवाद ,कत विधि सृजी नारि जग माहि ?‘ नारी हानि विसेस क्षति नाहीं ‘

 

चित्र

 

मौन जुलूस , दिनेश दासगुप्त , प्लाचीमाड़ा की महिला नेता मायलम्मा , वॉल मार्ट , सच्चिदानन्द सिन्हा की अनुमति , वूपिंग , प्रार्थना - सभा में गाँधी , पॉल रॉबसन-पीट सीगर-जोन बाएज़ ,

'बातचीत के मुद्दे' , पानी की किल्लतजोशे बोव्हे और अफ़लातून ,

 

अँग्रेजी / भारतीय भाषाएँ

हिन्दी दिवस पर : भाषा पर गाँधी , भाषा पर गांधी जी : एक बहस , भाषा पर गांधी और लोहिया भी , परिचर्चा पर बहस जारी है ,

 

चुनाव , राजनीति

राज्य आयोग का ई-पता , राजनीति में मूल्य : किशन पटनायक ,

राजनीति में मूल्य (शेष भाग) : किशन पटनायक ,

विधानसभा में विपक्ष में बैठेंगे, हम , पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनावी राजनीति में आई गिरावट , सीख वाले खेल और गैर - जवाबदेह चुनाव आयोग , सलमान खुर्शीद और चुनाव आयोग का मनमानापन , विभेद , मौजूदा चुनाव के लोकतंत्र विरोधी संकेत ,

इन्टरनेट / चिट्ठेकारी / पत्रकारिता

इन्टरनेट पर गांधी , ‘वेब पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल’मैथिली गुप्तजी और पत्रकारिता ,

मेरी चिट्ठाकारी और उसका भविष्य , चिट्ठेकारी सम्मोहक आत्ममुग्धता की जनक , मीडिया प्रसन्न , चिट्ठेकार सन्न ….‘खुले विश्व’ के बन्द होते दरवाजे , चिट्ठे इन्कलाब नहीं लाते ! , अपठित महान : महा अपठित , अकाल तख़्त को माफ़ी नामंजूर ? , रविजी , आप भी न भूलें, भागिएगा भी नहीं , प्रतिबन्धित पुस्तिकायें,एक किस्सा और एक खेल , "डबल जियोपार्डी " नारद की राहुल पर , गीकों की ‘गूँगी कबड्डी’ , ब्लागवाणी क्यों? , ” आप चिट्ठाजगत पर क्या-क्या कर सकते हैं” , ‘चिट्ठाजगत’ का प्रतिदावा , दिल्ली चिट्ठाकार - मिलन : एक अ-रपट ,

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