शुक्रवार, अगस्त 24, 2007

म.प्र. राज्य सुरक्षा अधिनियम : दुरुपयोग द्वारा दमन: ले. सुनील

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    जिस कानून के तहत अनुराग-शमीम को जिला बदर करने का नोटिस दिया है , वह आमतौर पर शातिर अपराधियों , खूंखार अपराधी गिरोहों , जुआरियों , वैश्यावृत्ति का अड्डा चलाने वालों आदि के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाता है । उनकी श्रेणी में राजनैतिक कार्यकर्ताओं को रखकर जिला प्रशासन ने इस कानून का दुरपयोग किया है । इसके पहले मध्यप्रदेश के के बड़वानी जिले के जागृत आदिवासी दलित संगठन के आदिवासी नेता एवं पूर्व विधायक विशंभरनाथ पाण्डे के विरुद्ध भी इसी तरह की कार्यवाहियाँ की गयी हैं। हाल ही में,छत्तीसगढ़ के एक अन्य कानून में श्रमिक नेता शहीद शंकर गुहा नियोगी के पूर्व सहयोगी , चिकित्सक और समाजसेवी डॉ. विनायक सेन को गिरफ़्तार करके जेल में रखा गया है । स्पष्ट है किइस प्रकार के कानूनों के मनमाने दुरुपयोग की काफ़ी संभावनाएं छोड़ी गयी हैं ।

    म.प्र. राज्य सुरक्षा अधिनियम , १९९० में भी सबसे बड़ा दोष है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ यह कानून इसलिए नहीं लगाया जाता है कि उसने कोई जुर्म किया है। बल्कि इसलिए कि जिला मजिस्ट्रेट 'इस बात से संतुष्ट है' या उसे 'ऐसा प्रतीत होता है' कि वह व्यक्ति कोई अपराध करने वाला है या उसे प्रेरित करने वाला है या करने के लिए आमादा है या वह पुन: अपराध करेगा । इस कानून की धारा ५ का इस्तेमाल तो उन व्यक्तियों के खिलाफ़ भी किया जा सकता है,जिन्होंने पहले कोई जुर्म नहीं किया हो। धारा १६ के तहत स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार भी आरोपी पर ही डाल दिया गया है । यह भारतीय न्याय व्यवस्था के आम सिद्धान्त के विपरीत है ,जिसमें व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है , जब तक उसके खिलाफ़ आरोप साबित न हो जाएं । धारा १९ में कहा गया है कि राज्य सरकार को या उसके अफ़सरों को अपनी जानकारी का स्रोत बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ।इसका मतलब है कि सरकारी अफ़सर बिल्कुल काल्पनिक,हवाई या मनगढ़न्त आरोप भी लगा सकते हैं और इस धारा की शरण ले सकते हैं। इस कानून का दुरपयोग करने वाले अफ़सरों को भी धारा ३३ ने अभयदान दे रखा है । इस धारा में प्रावधान है कि इस कानून के तहत 'अच्छे इरादे से की गयी किसी भी कार्यवाही' के लिए किसी भी अफ़सर के खिलाफ़ कोई भी दावा या अभियोग या मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा और न ही कोई हर्जाना मांगा जा सकेगा ।इस कानून के तहत अधिकारियों को आरोपी व्यक्त के खिलाफ़ कोई गवाह या सबूत पेश करने की भी जरूरत नहीं है,क्योंकि यह माना जा रहा है कि उस व्यक्ति ने गवाहों को भी दरा कर रखा है । इस कानून का सबसे बड़ा दोष यह है कि सारी कार्यवाहियाँ जिला मजिस्ट्रेट के हाथ में हैं, तथा पूरा प्रकरण न्यायालय में पेश करने की जरूरत नहीं है ।

    भारतीय संविधान में विधायिका , न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट विभाजन किया गया है। इस तरह के कानून न्याय का काम  न्यायपालिका से छीनकर कार्यपालिका को देते हैं और इस मायने में संविधान की भावना के खिलाफ़ हैं।संविधान में भारत के हर नागरिक को भारत के किसी भी हिस्से में घूमने , रहने तथा अभिव्यक्ति का अधिकार मिला है , यह कानून उसका भी हनन करता है।

    इस तरह कानून अंग्रेजों ने बनाये थे , ताकि वे भारतीय जनता को मनमाने ढंग से दबाकर व आतंकित करके रख सकें। अंग्रेजी राज समाप्त होने के बाद इन कानूनों की समीक्षा होनी चाहिए थी । लेकिन उल्टे आजाद भारत की सरकारें इस तरह के नए-नए कानून ला रही हैं । लोकतांत्रिक आन्दोलनों व जन असन्तोष का समाधान करने के बजाए उन्हें दबाने के लिए तथा राजनैतिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने के लिए इन कानूनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक आज़ाद व लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह के कानूनों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए ।

    आजाद भारत में समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया एवं मधु लिमये ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा १५१ ( शान्ति भंग की आशंका) के मनमाने उपयोग का विरोध किया था और सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। बाद में, आपातकाल के दौरान , मीसा तथा डी आई आर कानूनों में सारे विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था,तब भी इनके खिलाफ एक माहौल बना था ।लेकिन जेलों में बन्द नेता और उनके दल सत्ता में आने के बाद सब भूल गये व उसी राह पर चलने लगे हैं । हाल ही में, २५ जून को भारतीय जनता पार्टी ने आपातकाल की बरसी मनाई और लगभग उसी समय मध्यप्रदेश में उनकी सरकार शमीम-अनुराग दम्पती को जिला-बदर का नोटिस देने की तैयारी कर रही थी। यदि इस प्रवृत्ति को नहीं थामा गया,तो देश में पिछले दरवाजे से तानाशाही आते देर नहीं लगेगी । कहीं ऐसा न हो कि गरीबों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं को जिला-बदर करते-करते लोकतंत्र का ही देश-निकाला हो जाए ?

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( सुनील समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

उनका पता : ग्राम/पोस्ट केसला ,जिला होशंगाबाद,म.प्र.,४६११११

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