तीन बागी गायक
पूरी दुनिया को वक्त - बेवक्त अभिव्यक्ति की आजादी का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका ! इन तीन अमेरिकी गायक - लेखक - राजनैतिक कर्मियों के जीवन - संघर्ष इस भ्रम को तोड़ते हैं । अपने शैशव में इन तीनों के गीत सुने , उनकी राम - कहानियाँ सुनीं ।
गहन गम्भीर आवाज़ के धनी पॉल रॉब्सन ( १८९८ - १९७६ ) राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी , लेखक , अभिनेता और राजनैतिक कर्मी थे । पिता दासता के चंगुल से भाग कर निकले , पादरी बने और बेटे को पढ़ाया ।वकालत की पढ़ाई के बाद बतौर वकील अपने गोरे मुन्शी को कुछ लिखवाना चाहा । उसने इन्कार कर दिया।इस घटना ने पॉल रॉब्सन के जीवन को मोड़ दिया।अश्वेतों के हकों के लिए संघर्ष का यक़ीन पॉल के हृदय में पक्का हो गया ।पॉल रॉब्सन ने रंगमंच और फिल्मों में उस दौर में काम किया जब हॉलीवुड़ की फिल्मों में काले अभिनेताओं के स्वतंत्र व्यक्तित्व वाली भूमिकाएँ नहीं होती थीं ।
हॉलीवुड का चरित्र इतनी जल्दी नहीं बदलने वाला था सो पॉल ने फिल्मी दुनिया से विदा ली।यह जगप्रसिद्ध अभिनेता सिडनी पोइटियर की ‘गेस हू इज़ कमिंग टु डिनर’ से पहले का दौर था । कोड़े मारने का चलन कुछ सूबों में था जिसके विरुद्ध उन्होंने संगठन बनाया । मजदूर आन्दोलन और अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बन्ध के कारण उन पर तरह - तरह की बन्दिशें लगीं , पासपोर्ट जब्त हुआ ।पॉल रॉब्सन ने नाजियों और स्पेन के तानाशाह फ्रैंको के खिलाफ संघर्ष किया। मार्टिन लूथर किंग से पहले की अश्वेतों की लड़ाई की पहचान पॉल रॉब्सन से होती है ।
पीट सीगर
‘ जटिल और कठिन काम तो कोई बजरबट्टू भी कर सकता है , सरल काम को मेधावी ही अंजाम दे सकते हैं ।’ यह कहना है लोक गायक ,युद्ध विरोधी और पर्यावरणवादी पीट सीगर का । पीट के पिता संगीतशास्त्र के प्राध्यापक थे और गैर-पाश्चात्य संगीत पर उनका काम था । पीट सीगर अश्वेत नागरिक अधिकार आन्दोलन और युद्ध विरोधी आन्दोलनों में शामिल हुए और इनकी लोकप्रिय आवाज़ बने । पारम्परिक नीग्रो प्रार्थना ‘ हम होंगे कामयाब ‘ को लोकप्रियता दिलाने में पीट सीगर कारण बने। दुनिया भर के जन आन्दोलनों ने इसे अपना लिया। पीट को भी संसदीय - अवमानना की प्रक्रिया झेलनी पड़ी , टे.वि. प्रसारण पर रोक भी लगी। पीट के गीत अत्यन्त सरल और असरकारक होते हैं । मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में चले नागरिक अधिकार आन्दोलन पीट के संगीत समारोह लोकप्रिय हुए। प्रचलित रंगभेद पर व्यंग्यात्मक चोट इन गीतों की विशेषता थी। ‘यदि बस की पिछली सीटों पर मुझे न पाओ तो परेशान न होना,मुझे अगली कतार में बैठा पाओगे’ या ‘तरण-ताल में मुझे गायब पा कर मत चकराना,मिसीसिपी नदी के तट पर आना,मुझे पौड़ता पाओगे ।’ बस की अगली कतार और तरण तालों में अश्वेतों पर रोक पर यह व्यंग्य था।
पीट सीगर के गाए एक पसन्दीदा गीत के भावानुवाद की कोशिश :
क्या - क्या सीख के आये, दुलरुआ ?
स्कूल से क्या - क्या सीख के आये ?
आज तुम क्या - क्या सीख के आये , मेरी आँखों के तारे ?
“ हुकूमत रहे हर दम सशक्त ,
हमेशा सही , कभी न ग़लत,
सन नेता उत्तम इन्सान ,
बार -बार जिता कर हम रखते मान ।”
” वॉशिंग्टन कभी न बोले झूट
मरते हैं फौजी कभी-कदाच,
सीखा कि हम सब हैं आजाद
स्कूल में बोले मेरे उस्ताद ।”
“सीखा कि पुलिस है मेरी दोस्त,
इन्साफ़ कभी न होता पस्त ,
खूनी मरते हैं ,जुर्म के बदले ,
कभी-कदाच हो चूक भले ! “
” इतनी बुरी नहीं है जंग,
किन-किन में हम रहे दबंग,
हम लड़े जर्मनी में और लड़े फ्रान्स में ,
इक दिन आएगा , जब पाऊँगा चान्स मैं ॥ “
मूल गीत सौभाज्ञ से यू ट्यूब पर मौजूद है । ज़रूर सुनिए । पीट सीगर पिछले कुछ वर्षों से हडसन नदी की सफाई के लिए लोक अभियान चला रहे हैं । इस सरोकार के कारण ही वे बनारस भी आए ‘ स्वच्छ गंगा अभियान ‘ के न्यौते पर ।(स्वच्छ गंगा अभियान की पोल पट्टी,फिर कभी)। उनसे मिलने और उन्हें सुनने का अवसर मिला ।मैंने उन्हें ‘हिन्द स्वराज’ की प्रति भेंट दी ।हाँलाकि किताब उनकी पढ़ी हुई थी लेकिन गरिमा के साथ उन्होंने इस प्रशंसक की भेंट को क़बूला । ‘टेक्नॉलॉजी हमे बचा लेगी , हम उससे बचे रहे तब ! ‘ - पीट अपनी चुटीली शैली में कहते हैं ।
जोन बाएज़
जोन बाएज़ - बेहद ख़ूबसूरत आवाज़ की धनी , बेहद ख़ूबसूरत गायिका और आन्दोलनकारी । मेक्सिकी मूल के कारण विभेदकारी व्यवहार झेला। वाणी-स्वातंत्र्य और ,रंगभेद और जंग विरोधी आन्दोलनों में सक्रिय शिरकत। १९६९ में मेरे पिताश्री उनसे मिले थे और ‘ यत्र विश्वं भवत्येकनीड़म’ नामक यात्रा वृत्तान्त में इस मुलाकात का कुछ रूमानी- सा विवरण-वर्णन उन्होंने दिया है। उन्होंने अपने रेकॉर्डों के कई आल्बम हस्ताक्षरित कर पिताजी को भेंट दिए। पिताजी से मुलाकात का विवरण उन्हींके शब्दों में देना उचित होगा , जल्द ही कभी । प्रकाशक के पास किताब नहीं बची,लेखक से प्राप्त की जाएगी। यहाँ उनका गाया एक अत्यन्त सुन्दर गीत दे रहा हूँ ।
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