मंगलवार, अगस्त 07, 2007

कत विधि सृजी नारि जग माहि ?

    तुलसीदास का छद्म सेक्युलरवाद नामक पोस्ट में मैंने एक चौपाई की पहले की पंक्ति और एक की बाद की पंक्ति के बारे में पूछा था । टिप्पणियाँ आईं , जवाब नहीं आया ।कुछ ने पढ़ समझ कर टिप्पणियाँ दीं और कुछ को पढ़ने-समझने का सहूर होता ही नहीं । हिन्दी पढ़ाने वाले मित्र मसिजीवी ने 'छद्म' की अनावश्यकता पर प्रकाश डाला लेकिन चौपाइयों की पद-पूर्ति उन्होंने भी नहीं की ।

  किसी भी तथ्य को तोड़ने-मरोड़ने का इतिहास गोबेल्स के भक्त-समूह के साथ जुड़ा है-नालबद्ध । गाँधी-हत्या के कलंक को धोने-पोछने के निष्फल चक्कर में गाँधीजी शाखा के 'प्रात: स्मरणीय' हो गए लेकिन 'शाखा-पुस्तिका' में अब तक हत्यारों द्वारा 'गाँधी-वध' की जो 'वजह' बतायी जाती है ,उसका उल्लेख भी रहता है ।

    गोलवलकर शताब्दी के अवसर पर प्रकाशित साहित्य में गाँधीजी की तेरही पर 'गुरुजी' द्वारा भेजे गए टेलिग्राम इसका विशेष उल्लेख किया गया है - इसी पोछने वाले क्रम में । गाँधीजी की तस्वीर को जूते में रख कर चाँदमारी में निशानेबाजी करने ( हत्या से पहले ) की सूचना तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने गाँधीजी के सचिव प्यारेलाल को दी थी । प्यारेलाल की प्रसिद्ध पुस्तक ' पूर्णाहुति ' में इसका हवाला है ।

    १९९१- '९२ के दौर में 'रामजन्मभूमि' के पक्ष गाँधीजी के फर्जी पत्र को उछालने की कोशिश हुई थी । गाँधीजी के साहित्य का कॉपीराइट धारण करने वाले नवजीवन ट्रस्ट ने इसके फर्जी होने के बारे में वक्तव्य जारी किया था । संघियों की इस नापाक साजिश के बाद इस लेखक ने गाँधीजी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,'हिन्दू-राष्ट्र' , मस्जिदों में प्रतिमा रखने तथा सांप्रदायिकता से सम्बन्धित विचार 'धर्मयुग' में प्रकाशित एक लेख में प्रस्तुत किए । वह लेख संजाल पर दो हिस्सों में उपलब्ध है ।

    बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद लालकृष्ण अडवाणी ने 'धोओ-पोछो' तिकड़म के तहत नेता विरोधी दल के पद से इस्तीफा दिया था।

    बहरहाल, "इनकी गाथा छोड़ चलें हम 'मानस' के मैदानों में " और दोनो चौपाइयों की सन्दर्भ सहित पद-पूर्ति करें ।

कत विधि सृजी नारी जग माहि

    " जब पार्वती का विवाह हो गया , तब उनकी माँ मैना विदाई के मौके पर दुखी हो कर समझाने-बुझाने पर संताप की वह बेजोड़ बात कहती है , जो सारे संसार की नारी हृदय की चीख है ।

" कत विधि सृजी नारी जग माहीं ,

   पराधीन सपनेहु सुख नाही । "

" गजब है तुलसी ! क्या ममता , क्या नारी हृदय की चीख , क्या नर-नारी के आदर्श-जीवन की सूचना । आखिर उसने संसार को किस रूप में जाना है,

" सियाराम मय सब जग माहीं । "

                                - डॉ. राममनोहर लोहिया .

चेरी छोड़ न होईंहो रानी

' कोऊ नृप होंय हमे का हानि ,

चेरी छोड़ न होइहों रानी "

    यह गोस्वामीजी मन्थरा के मुँह से कहवाते हैं । मंथरा-वृत्ति आज भी व्याप्त है । इस वृत्ति के लोगों की शातिरी की यह सफलता है कि बाद की पंक्ति चर्चा पहली पंक्ति के साथ नहीं होती । पहली पंक्ति की व्याप्ति अराजनीतिकरण के व्याप्त माहौल में फ़िट बैठ जाती है ।

इष्ट देव सांकृत्यायन ने अपनी दूसरी टिप्पणी में 'मसीद' वाले पद का उल्लेख कर स्पष्ट रूप से तथ्य प्रस्तुत कर दिए हैं ।

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