विधानसभा में विपक्ष में बैठेंगे, हम
उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव एक ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्वीकरण की शक्तियों के आगे राजनीति घुटने टेक रही है । राज्य सत्ता का दायरा छोटा हो रहा है , उसके साधन और शक्तियाँ घट रही हैं , राजनैतिक संगठनों की विश्वसनीयता घट रही है । राजनैतिक आन्दोलन की आभा और आकांक्षा कम होती जा रही है । आम जनता अपने हाथों से अपनी नियति का निर्माण कर सकती है - यह विश्वास टूटता जा रहा है ।
बेलगाम पूँजीवाद पर नकेल डालने की बात दो दूर सपा-सरकार ने देश के नामी-बदनाम पूँजीपतियों को विकास-परिषद में औपचारिक ओहदा दिया है । इस विकास-परिषद से जुड़े सपा-प्रेमी उद्योगपतियों द्वारा प्रदेश में रोजगार सृजन न कर कई स्थानों पर सरकार की मदद से किसानों की जमीनें हड़प ली हैं । नवधनाढ्यों के लिए शहर बनाए जा रहे हैं,इन जमीनों पर ।
पिछले तीन चुनावों से प्रदेश की जनता किसी राजनैतिक दल को स्पष्ट बहुमत देने लायक नहीं मान रही है । एक बार राष्ट्रपति शासन के छ: माह बीत जाने के बाद तीन प्रमुख विपक्षी दलों को तोड़ कर तथा शराब-सिंडीकेट और माफ़िआ निर्दलीय विधायकों को मन्त्री पद के लोभ से जोड़ कर कल्याण सिंह ने सरकार बनायी थी । नैतिकता और शुचिता के भाजपा के दावे का खोखलापन बेपर्दा हुआ था ।तब से अब तक की सभी सरकारों में इन यह २०-२५ विधायक मन्त्री रहे हैं । मुख्यधारा के सभी दल इस परिघटना को मुद्दा नहीं बनाते , चूँकि चुनाव उन्हें भी यह हथकण्दा अपनाना पड़ सकता है । ' सरकार चाहे जिसकी बने, हम मन्त्री बनेंगे'- ऐसे निर्दलीय भी दावा ठोक रहे हैं । समाजवादी जनपरिषद विधानसभा में विपक्ष में बैठने की घोषणा के साथ चुनाव लड़ रही है ।
यह मात्र संयोग नहीं है कि राज्य सत्ता का दायरा इतिहास के उस दौर में सिमट रहा है जब पिछड़े , दलित और आदिवासी समाज का रजनीतिकरण हो रहा है । आर्थिक नीतियों से इन तबकों पर पड़ रही मार को मुद्दा न बना कर , सामाजिक न्याय के पक्षधर शक्तियाँ जातिगत दल और जाति-सम्मेलन आयोजित करवा रही हैं । जनता की समस्याओं के लिए संघर्ष करने के बजाय जाति के नाम पर वोट लेने का आसान तरीका चुन लिया गया है । दरअसल जातिविहीन समाज बनाने का आदर्श उनके 'सामाजिक न्याय' के आड़े आता है । बहुजन समाज पार्टी ने आज तक अपनी आर्थिक नीति घोषित नहीं की है ।
विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने का कानून संसद में बिना विरोध पास हुआ था। राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली भाजपा खेमे के लोगों का प्रशिक्षण ऐसा हुआ है कि वे राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता में फर्क नही कर पात उनकी साम्प्रदायिक भावना ज्यादा प्रबल है और दबाव पड़ने पर उनका राष्ट्रवाद दब जाता है। कम्युनिस्टों से वक्र-बेवक्त अभय प्राप्त करने वाली सपा नन्दीग्राम में सेज्विरोधी किसानों की हत्या पर चुप हो जाती है। जन विरोधी आर्थिक नीतियों की प्रणेता कांग्रेस हांलाकि उत्तर प्रदेश में अप्रासंगिक हो चुकी है परन्तु यह जरूरी है कि उसे कमजोर किया जाय ।
समाजवादी जनपरिषद मानती है कि उत्तर प्रदेश के सही विकास के लिए :
- शहरीकरण और बड़े उद्योगों के बजाय गाँव, छोटे उद्योग व हस्तशिल्प व खेती के विकास पर ज्यादा ध्यान देना होगा । गाँव और खेती को देश के विकास के केन्द्र में रखना होगा और उसकी खुशहाली को सर्वोच्च प्राथमिकता देना होगा । खेत बचेगा तो देश बचेगा । जो खेती अभी घाटे का धन्धा और कर्ज का जाल है , उसे लाभकारी बना कर गाँव की समृद्धि का आधार बनाना होगा ।बढ़ती लागत और उपज के कम दामों के बीच किसान पिस रहा है । विश्वव्यापार संगठन के हुक्म से आयातों से प्रतिबन्ध हटाने, आयात शुल्क कम करने और अंतर्राष्ट्रीय बाजार खुला कर देने से कृषि उपज के दाम या तो गिर रहे हैं या उस अनुपात में बढ़ नहीं रहे हैं । किसानों को इस हालत में ला खड़ा करने के लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार तथा मुख्यधारा के दल दोषी हैं ।
- भारी मशीनों तथा भारी पूँजी वाली तकनालाजी के स्थान पर श्रम-प्रधान व स्थानीय संसाधनों व हुनर पर आधारित उद्योग धन्धों अपनाने चाहिए । बड़ी परियोजनाओं की जगह छोटी योजनाओं को ही प्राथमिकता देना होगा ।
- शान-शौकत , विलासिता और मंहगे उपभोक्ता सामानों के बजाय आम लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर जोर देना चाहिए । भोजन , आवास , पेयजल ,सिंचाई , शिक्षा और इलाज की उचित एवं न्यूनतम व्यवस्था हर नागरिक के लिए होनी चाहिए ।
- विदेशी कर्ज , विदेशी पूँजी , विदेशी तकनीक तथा विदेशी कम्पनियों से मुक्ति पा कर देश को स्वावलम्बी बनाना होगा ।
- जल-जंगल-जमीन व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन स्थानीय लोगों को देना होगा और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी ।
- पंचायत-राज और स्थानीय निकायों के कानून व अन्य नियम कम से कम और इतने सरल और छोटे बनाये जाँए कि नौकरशाही अपने दाँव-पेंच न चला सके । इन निकायों के स्वयं के आय के पर्याप्त स्रोत हों और वे स्वावलम्बी हों ।
अफलातुनजी,
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से सभी चीजे साथ साथ चल सकती है. आज हम उस दौर मे नही जी रहे हैं जब हम भारी उद्योगों की स्थापना पर ही सवाल खडे कर दें.
दुनिया आगे जा रही है तब हमे कदम से कदम मिलाकर चलना ही होगा.
किसानों के हितो की रक्षा होनी चाहिए पर आपकी इस बात पर कैसे सहमत हुआ जा सकता है : "शहरीकरण और बड़े उद्योगों के बजाय गाँव, छोटे उद्योग व हस्तशिल्प व खेती के विकास पर ज्यादा ध्यान देना होगा ।"
शहरीकरण और बडे उद्योग भी जरूरी है.. हमे आधुनिक बनना ही है..
पर किसी की किमत पर नही. काम कभी छोटा या बडा नही होता. आज अगर बडे उद्योग जरूरी है तो उतनी ही खेती भी जरूरी है. पर मात्र वही जरूरी है, मात्र लघु उद्योग ही होने चाहिए.. शहरीकरण मत करिए, भारी उद्योग मत लगाइए.. माफ किजीए यह अब सम्भव नही है. भारत की सोच अब इतनी दकियानुसी नही रही. और शुक्र है नही रही....
आपकी पार्टी ने योग्य निर्णय लिया है विपक्ष मे बैठने का.
अगर मेरे किन्ही शब्दो से आपको ठेस पहुँची हो तो क्षमा करें, पर मै कोई विवाद नही खडा कर रहा, ना ही मेरी क्षमता है ना ईच्छा है. बस अपनी बात रख रहा हुँ.
जिन मुद्दो पर सहमती है उनमे एक हिअ खेती को लाभका धंधा बनाना. इसके लिए खेती पर से ज्यादा लोगो की निर्भरता को खत्म करना होगा. उद्योग लगा कर रोजगार देने से खेती पर से निर्भरता कम होगी.
जवाब देंहटाएंशिक्षा व स्वास्थय अगला महत्वपूर्ण कार्य है.