मंगलवार, जुलाई 17, 2007

दिल्ली चिट्ठाकार - मिलन : एक अ-रपट

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    चिट्ठाकारी से जुड़े पत्रकार , छात्र , गृहणियाँ ,व्यवसायी ,अध्यापक और गीक १४ जुलाई ,'०७ को दिल्ली में मिले । इस माध्यम से जुड़े इन विविध पृष्टभूमि के लोगों की बातचीत में भी विविधता थी लेकिन एक अन्तर्धारा सभी को जोड़ रही थी । रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से प्राप्त आत्म-तुष्टि के साथ सबने विचार रखे और सुने ।

    संजाल का कोई मालिक कोई व्यक्ति,सरकार, कम्पनी या समूह नहीं है ।इससे जुड़े व्यवसाय में भले ही दानवाकार कम्पनियाँ मौजूद हों ।टेलिफोन कम्पनियाँ ,इन्टरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनियाँ और इन्टरनेट के सेवा देने वाली कम्पनियाँ । इन्टरनेट पर कम्पनियों के नियंत्रण का प्रयास पूँजीवाद के झण्डाबरदार देश अमेरिका में भी सफल नहीं हो सका है । ऐसी साजिशों के खिलाफ़ अभियान काफ़ी व्यापक और तीव्र रहे हैं और संसद और अमरीकी संसद के निर्णय को प्रभावित करने में भी वे सफल रहे हैं ।

    इस माध्यम से जुड़ा कोई भी तंत्र लोकमत की उपेक्षा करे यह मुमकिन नहीं है ।तंत्र से जुड़े प्रबन्धक लिंकन की प्रसिद्ध उक्ति पर ध्यान न दें , तब ?

" आप लोकतंत्र में कुछ लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख बना सकते हैं , सभी लोगों को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं परन्तु सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते हैं । "

    हिन्दी चिट्ठेकारी से जुड़े जिन लोगों का जमावड़ा १४ जुलाई को दिल्ली में हुआ उन सब की बातों से यह यक़ीन जरूर पुख़्ता हुआ कि इस जमात को हमेशा के लिए मूर्ख बना कर रखना असम्भव है ।

स्फुट झलकियाँ ( जिन से मैं प्रभावित हुआ )

'कैफ़े कॉफ़ी डे' में कॉफ़ी का बिल चुकाया जा चुका था । अमित गुप्ता को कवयित्री रचना सिंह ने अपना सहयोग देना चाहा तब अमित ने कहा कि ' महिलाओं से हम पहले आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहते।' रचनाजी द्वारा इस विभेदकारी रवैए पर गम्भीर आपत्ति जताने के बाद अमित ने पैसे लिए।

प्रतिष्ठित चिट्ठाकार घुघूती बासूती ने चिट्ठेकारी से जुड़े मन्दकों-प्रबन्धकों से उम्मीद की कि वे ज्यादा सहनशील ,उदार और धैर्यवान बनें।

स्तंभकार आलोक पुराणिक ने घोषणा की कि वे पाँच लाख पाठक पाने के लक्ष्य के साथ चिट्ठाकारी कर रहे हैं । अमर-उजाला के वित्तीय दैनिक 'कारोबार' के जमाने में सलाहकार-सम्पादक के रूप में उनका घोषित लक्ष्य था सालाना एक करोड़ रुपए कमाना । चिट्ठेकारी के बारे में उनके खुले बाजार की थीसिस का प्रतिवाद में 'कॉफ़ी-हाउस' के भुपेन ने उनसे पूछा कि क्या वे सहकारी प्रयासों को इस खाके में में शामिल करेंगे? आलोकजी ने इस संशोधन पर अनापत्ति प्रकट की।

लगता है सृजन-शिल्पी अपनी नौकरी में सोमनाथ चटर्जी और शेखावत के सदन संचालन को बहुत गौर से देखते हैं ।शिष्टतापूर्ण आग्रह से चुप कराने के उनके औपचारिक वचनों में सोमनाथजी और शेखावतजी की झलक देखी जा सकती थी ।

उत्तर-आधुनिकता के दौर में प्रचलित 'यदि उन्हें परास्त न कर सको तो उनके साथ शामिल हो जाओ' सिद्धान्त को भी उन्होंने आत्मसात कर लिया है। उनकी धार्मिक भावनाओं के आहत मन ने नारद-संचालन पर व्यापक प्रश्न उठाये थे, उनका उत्तर मिला हो तो उसकी सार्वजनिक सूचना नहीं हुई।फिलहाल, 'नारद-पत्रिका' के वे सम्पादक हैं ।

सुनीता शानू की कम्पनी की निर्यात-श्रेणी की चाय की मसिजीवी ने तहे -दिल से प्रशंसा की।

"कुछ ही पलों में पोस्ट एग्रीगेटर पर' के सन्दर्भ में वरिष्ट चिट्ठेकार जगदीश भाटिया ने मौजू राय व्यक्त की - " क्या हम इतनी अल्पावधि की प्रासंगिकता वाला लेखन कर रहे हैं ?"

नीरज दीवान ने मराठी विकीपीडिया की प्रशंसा की तथा हिन्दी विकीपीडिया की विपन्नता पर चिन्ता व्यक्त की ।

अविनाश ने चिट्ठों पर प्रस्तुत सामग्री की गुणवत्ता की तकनीकी उपायों की तुलना में अधिक अहमियत पर जोर दिया ।

इस बातचीत के मेजबान 'हिन्दी गियर' और ब्लॉग वाणी के मैथिली गुप्त ने बहुत शिद्दत से कहा कि नेट पर हिन्दी-हित में व्यक्ति भी बड़े योगदान दे सकता है।(यह जरूरी नहीं कि ऐसे योगदान सामूहिक ही हों।)

इन्जीनियरिंग के छात्र रहे शैलेश भारतवासी के हिन्दी चिट्ठेकारी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों की प्रशंसा हुई । फैजाबाद-इलाहाबाद में उन्होंने हाल ही में दौरा किया है ।

इलाहाबाद में  उनके साथ हुई बैठक की पूर्व-सूचना चिट्ठों पर दी गई थी ।इलाहाबाद-वासी चिट्ठेकारों को भी ई-मेल पर सूचना दी गई थी। चिट्ठाकारों में सिर्फ प्रमेन्द्र पहुँचे और शैलेश ने वहाँ पहुँचे तरुणों को हिन्दी चिट्ठेकारी के बारे में बताया ।

एक बार प्रबन्धशास्त्र के प्राध्यापक 'भारतीयम' के अरविन्द चतुर्वेदी को बाजार में हिन्दी टाइपिंग की सुविधा नहीं मिली।संजाल पर खोज-खोज कर उन्होंने हिन्दी टंकण के औजार अपने कम्प्यूटर पर डाले और तब से हिन्दी में काम शुरु कर दिया ।

 

1 टिप्पणी:

  1. वाह!!
    बढ़िया रपट दी आपने, ऐसे तरीके से दी है कि चित्रों के बिना भी दिमाग मे एक खाका उभर आया!!

    आभार!

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