मंगलवार, फ़रवरी 13, 2007

आयात - निर्यात और मीडिया : किशन पटनायक

' हम निर्यात करेंगे तो हमारा विकास होगा ।' मीडिया के लिए यह एक मंत्र है । विश्व बैंक से यह मंत्र आया है । हमारे विद्वानों में यह साहस नहीं है कि इस गलत धारणा को देश के दिमाग से हटाने की कोशिश करें । भारतीय अर्थनीति में निर्यात की भूमिका के बारे में एक सही दृष्टि होनी चाहिए ।

कुछ ही देश होंगे जिनका प्रारंभिक विकास निर्यात पर निर्भर है । साधारण नियम यह है कि जिस देश में अगर कृषि और उद्योग का विकास हो रहा है तो विकास का तकाज़ा है कि आयात निर्यात में भी वृद्धि की जाए ।यूरोप अमरीका में भी यह हुआ । उद्योग का तीव्र विकास होने लगा तो निर्यात भी बढ़ा ।

विश्व बैंक जानबूझकर विकासशील देशों को गलत सलाह देता है । निर्यात को कृत्रिम ढंग से बढ़ाने के लिए विकासशील देश अपनी वस्तुओं का दाम कम कर देते हैं । इससे पश्चिम के धनी देशों को बहुत फायदा है ।एक हिसाब के मुताबिक १९८० के बाद गरीब देशों से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का दाम ४५ प्रतिशत घटा है । यानी पश्चिम के उपभोक्ताओं को हमारी चीजें आधे दाम पर मिल जाती हैं । इसी कारण पश्चिम के नागरिक मौजूदा अर्थव्यवस्था से खुश हैं ।

विकासशील देशों को यह देखना होगा कि उनका आयात निर्यात से अधिक न हो । आयात अगर निर्यात से ज्यादा होगा तो व्यापारिक घाटा होगा । पिछले दस साल के आयात-निर्यात को देखेंगे तो हम पाते हैं कि भारत हमेशा घाटे में व्यापार कर रहा है ।

विकासशील देशों के आयात को बढ़ाने के लिए विश्वव्यापार संगठन का अपना नियम है । आयात शुल्कों को घटाने के लिए मुद्राकोष और विश्वव्यापार संगठन दोनों दबाव डालते हैं । जैसे-जैसे उपभोक्तावादी संस्कृति फैलती है और आयात शुल्क शून्य की ओर बढ़ता है आयात तीव्र गति से बढ़ता है ।उसके साथ निर्यात का कोई मेल नहीं रह जाता है ।निर्यात बढ़ाने की आतुरता में हमारी सरकार निर्यातकारी व्यवसाइयों की गलतियों को अनदेखी कर देती है । इसका फायदा उठाकर आयात-निर्यात के दौरान ये व्यवसायी देश का धन विदेशों में ले जाकर वहाँ के बैंकों में रखते हैं। यानी विदेशों में भारत का काला धन संचित होता है ।राष्ट्रपति के.आर. नारायण जब उपराष्ट्रपति थे , तब उन्होंने एक बार कहा था कि केवल यूरोप के बैंकों में भारत का एक लाख करोड़ रुपया अवैध रूप से रखा हुआ है ।

रुपया हमारी आर्थिक स्थिरता का प्रतीक है । लेकिन रुपया हर साल गिरते जा रहा है। कभी स्थिर नहीं रहा ,न ऊपर चढ़ा। कभी मुद्राकोष के आदेश से वह गिरता है तो कभी बाजार के दबाव में गिरता है । इस पर जब चिंता व्यक्त होती है तो मीडिया प्रचार करती है कि इससे निर्यात को फायदा है । निर्यात सर्वोपरि है ।उसके ऊपर विकास निर्भर है । अगर रुपया गिरने से निर्यात बढ़ेगा तो गिरने दो । इस प्रकार की मानसिकता सचमुच राष्ट्र के लिए लज्जा की बात है ।

मीडिया अक्सर इस बात को छुपाती है कि निर्यात के लिए सरकार को कितना घाटा सहना पड़ता है ?सरकार को कितनी सबसिडी निर्यात को देनी पड़ती है ।सबसिडी को बदनाम किया जाता है,निर्यात का उल्लेख तक नहीं होता है ।

मीडिया का इसमें अपना स्वार्थ है । मीडिया के बहुत सारे मालिक हैं जिनका अपना आयात-निर्यात का धंधा रहता है । निर्यात को प्रोत्साहन मिलने पर या आयात को नि:शुल्क कर देने पर उनको बहुत ज्यादा फायदा होता है ।संपन्न लोगों का वर्ग स्वार्थ इसमें है कि निर्यात बढ़ रहा है कह कर आयात बढ़ाने की छूट मिल जाती है और संपन्न वर्ग की चाह के मुताबिक विदेशों से उपभोक्तावादी वस्तुएं देश में आ जाती हैं । मीडिया का जुड़ाव इसी वर्ग के साथ है । हम सूचना के लिए मीडिया का सहारा लेते हैं । लेकिन मीडिया निष्पक्ष सूचना कम देती है । अर्थनीति और संस्कृति के बारे में गलत धारणाओं को फैलाना इसका मुख्य काम होता जा रहा है ।

निर्यात के बारे में हम कह सकते हैं कि एक अच्छी आधुनिक अर्थव्यवस्था का निर्यात एक अनिवार्य अंग है । लेकिन निर्यात का मूल्यांकन आयात के साथ जोड़कर होना चाहिए । आयात-निर्यात में देश की कृषि और उद्योग का विकास प्रतिफलित होना चाहिए । केवल निर्यात में वृद्धि आर्थिक सुधार का सूचक नहीं है ।

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