शनिवार, दिसंबर 30, 2006

भारत भूमि पर विदेशी टापू : ले. सुनील

भारत भूमि पर विदेशी टापू : ले. सुनील

अचानक इस देश में ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ ( Special Economic Zones ) की बाढ़ आ गयी है। हरियाणा व पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक और गुजरात से ले कर हिमाचल प्रदेश तक नए - नए ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ के प्रस्ताव स्वीकृत होने और बनने की खबरें आ रही हैं। अभी तक कुल १६४ प्रस्ताव केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत किए जा चुके हैं। भारत के विकास , समृद्धि व प्रगति के नए सोपान और सबूत के रूप में इन्हें पेश किया जा रहा है। आखिर यह है क्या चीज ?
देश के निर्यात को बढ़ाने के लिए बनाए जा रहे इन क्षेत्रों की कल्पना चीन से आई है। यह चीन की राह का अनुकरण है। पहले भारत ने ‘ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र ‘ बनाए थे। फिर पिछले दस वर्षों से सुविधाएं और रियायतें बढ़ाते हुए इन्हें ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ का नाम दिया गया। लेकिन इनमें तेजी तब आयी , जब पिछले वर्ष २००५ में देश की संसद में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लिए विधिवत एक कानून बना दिया गया तथा ९ फरवरी २००६ को वाणिज्य मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ में स्थापित होने वाले निर्यात - आधारित उद्योगों को देश के करों और कानूनों से अनेक तरह की छूटें , सुविधाएं और मदद दी जाती है। इनकी परिभाषा ही यह है कि वे व्यापार करों व शुल्कों की दृष्टि से ‘ विदेशी क्षेत्र ‘ माने जाएंगे। भारत के नियम , कानून व कर वहाँ लागू नहीं होंगे। वे एक प्रकार से भारत सरकार की संप्रभुता से स्वतंत्र , स्वयम संप्रभू इलाके होंगे। यह माना जा रहा है कि अनेक विदेशी कंपनियाँ इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होंगी और उनके आने से भारत का निर्यात तेजी से बढ़ेगा। विदेशी पूंजी को आकर्षित करने में भारत पिछड़ता जा रहा है। चीन भारत से बहुत आगे है। इन क्षेत्रों के बनने से वह कमी भी दूर हो जाएगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में करों में रियायतों की सूची लम्बी है। ये रियायतें इन क्षेत्रों में स्थापित होने वाले उद्योगों तथा क्षेत्र का विकास करने वाली कंपनियां , दोनों के लिए होगी। वस्तुओं और सेवाओं , दोनों को प्रदान करने वाली इकाइयों को छूट मिलेगी। आयकर में छूट पन्द्रह वर्ष के लिए होगी , जिसमें पाँच वर्ष तो शत - प्रतिशत छूट होगी और अगले पाँच वर्ष भी ५० प्रतिशत छूट होगी। विदेशों से मंगाए जाने वाले कच्चे माल या उपकरणों पर कोई आयात शुल्क नहीं लगेगा। देश के अन्दर से खरीदी गई चीजों पर उत्पाद शुल्क नहीं लगेगा और केन्द्रीय बिक्री कर की राशि वापस कर दी जाएगी। लाभांश वितरण कर , न्यूनतम वैकल्पिक कर , पूंजीगत लाभ कर , ब्याज पर कर , बिक्री कर , वैट आदि में भी छूट दी गई है। इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सेवा कर भी माफ़ रहेगा। जिन उद्योगों में अभी विदेशी पूंजी निवेश पर सीमा है , जैसे बीमा , दूरसंचार या निर्माण , उनमें १०० प्रतिशत विदेशी शेयरधारिता की अनुमति भी दी जाएगी। लाइसेन्स आदि की झंझटों व प्रतिबन्धों से भी मुक्ति रहेगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सस्ते कर्ज की सुविधा मिलेगी , सारी अनुमतियाँ एक जगह देने की एकल - खिड़की व्यवस्था बनाई जाएगी और विभिन्न प्रकार की निगरानी के लिए भी एक ही एजेन्सी होगी। बदले में बस एक ही शर्त रहेगी कि विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को कुल मिलाकर शुद्ध विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला होना चाहिए। वे सब आयात भी कर सकती हैं , किंतु उनके निर्यात , आयात से ज्यादा होने चाहिए। राज्य सरकार के करों व शुल्कों से विशेष आर्थिक क्षेत्रों की इकाइयों को मुक्त करने के लिए हरियाणा सरकार ने तो केन्द्रीय कानून की तर्ज पर ‘ हरियाणा विशेष क्षेत्र अधिनियम , २००५ ‘ भी पास कर लिया है।
करों व नियमों में ये छूटें न केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों के उद्योगों को होगी , बल्कि सेवाओं और व्यापार में भी मिलेगी। जैसे सूचना तकनालॊजी में। जो विदेशी बैंक अपनी शाखा वहाँ खोलेंगे , उनके मुनाफे पर टैक्स नहीं लगेगा। कोई कंपनी वहाँ बिजली कारखाना खोलेगी , तो उसे भी कर नही देना पड़ेगा। जो कंपनियाँ या फन्ड्स वहाँ स्थित नहीं हैं , किन्तु जिन्होंने वहाँ पूंजी लगाई है , उनके ब्याज व मुनाफ़े पर भी कर नहीं लगेगा। कुल मिलाकर ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ एक तरह के ‘ कर - स्वर्ग ‘ होंगे , जहाँ सरकार के करों और प्रतिबन्धों से पूरी आजादी होगी।
भारत के कम से कम दो दर्जन कानून विशेष आर्थिक क्षेत्रों में लागू नहीं होंगे। वहाँ के विवादों और मुकदमों के फैसला करने वाली अदालतें भी अलग होंगी। यद्यपि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि देश के श्रम , बैंकिंग और शेयर बाजार के कानून वहाँ लागू होंगे , किन्तु देर - सबेर वहाँ श्रम कानूनों में छूट दी जाएगी, यह तय है। चीन के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में आने का यह एक प्रमुख आकर्षण था कि चीन के श्रम कानून वहाँ लागू नहीं होते थे। ये कंपनियाँ चाहे जब मजदूरों को लगा व निकाल सकें , ठेका मजदूर या चाहे जिस रूप में मजदूरों को लगा सकें और चाहे जो मजदूरी दें - ये आजादी विशेष आर्थिक क्षेत्र में उनको हो इसकी वकालत भारत में भी की जा रही है . गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारों ने तो आसान श्रम कानूनों की योजना बनाई भी है। खबर है कि छ; राज्य सरकारों ने केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के पास प्रस्ताव भेजा है कि इन क्षेत्रों में ‘ सरल ‘ श्रम कानूनों की अनुमति दी जाए। भारत के आर्थिक नक्शे पर चमकते हुए ये क्षेत्र मजदूरों के सबसे बुरे शोषण के क्षेत्र भी हो सकते हैं। इसी प्रकार , पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण - रोकथाम के नियमों को भी इन क्षेत्रों में ताक पर रखा जा सकता है।इस प्रकार से अब देश दो भागों में बंट जाएगा। एक ‘घरेलू शुल्क क्षेत्र ‘ जहाँ देश के कानून लागू होंगे ,दो ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ जो देश के कानूनों , नियमों व लोकतांत्रिक प्रशासन से परे व ऊपर होंगे .
ये विशेष आर्थिक क्षेत्र १० हेक्टेयर से ले कर हजारों हेक्टेयर के हो सकते हैं। कोई ऊपरी सीमा नहीं है और रिलायन्स के कुछ विशेष आर्थिक क्षेत्र तो १५ हजार हेक्टेयर तक के विशाल भूभाग में बन रहे हैं। ये विशेष आर्थिक क्षेत्र किसी एक वस्तु या सेवा पर केन्द्रित भी हो सकते हैं और अनेक वस्तुओं या सेवाओं के भी हो सकते हैं। भारत सरकार द्वारा तय नियमों के मुताबिक अनेक वस्तुओं के उद्योगों वाले ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ का न्यूनतम क्षेत्रफल १००० हेक्टेयर होना चाहिए। एक वस्तु या सेवा के क्षेत्र ( जैसे हीरा - जवाहरात या जैव - तक्नालाजी या सूचना तकनालाजी ) न्यूनतम १० हेक्टेयर तक भी हो सकते हैं।
भारत सरकार ने यह भी छूट दी है कि इन ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ के कुल क्षेत्रफल में उद्योगों की इकाइयों का क्षेत्रफल ३५ प्रतिशत से ज्यादा करने की बाध्यता नहीं होगी। दूसरे शब्दों में ६५ प्रतिशत तक जमीन पर आवासीय कालोनी , रेस्तराँ , मल्टीप्लेक्स , मनोरंजन केन्द्र , शापिंग माल , गोल्फ़ कोर्स , हवाई अड्डा , स्कूल , अस्पताल आदि बनाये जा सकते हैं। कहने को तो ये सुविधाएं ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ के अन्दर के उद्योगों व इकाइयों में कार्यरत मजदूरों व कर्मचारियों के लिए होगी , किन्तु क्षेत्र के बाहर के लोगों को भी इनका इस्तेमाल करने से रोकने का कोई तरीका तो नही होगा। इसका मतलब यह भी है कि निर्यात संवर्धन की आड़ में कई अन्य धन्धे भी यहाँ पनप सकते हैं। महानगरों के पास सस्ती जमीन , करों में छूट और बाहर से सीमेन्ट , इस्पात , लिफ्ट , बिजली उपकरण आदि चीजें निशुल्क आयात करने की सुविधा के कारण कई जमीन - जायदाद का धन्धा करने वालि निर्मान कंपनियों के लिए भी ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ का आकर्षण बढ़ गया है। राहेजा , यूनिटेक , डीएलेफ़ , युनिवर्सल आदि ऐसी ही कंपनियां हैं जो ‘ विशेष आर्थि क्षेत्र बनाने तथा विकसित करने के लिए आगे आ गयी हैं।
इसी प्रकार , विशेष आर्थिक क्षेत्र कानून में विनिर्माण की परिभाषा इतनी व्यापक रखी गयी है कि उसमें रेफ्रिजरेशन ( प्रशीतन ) , रंगाई , कटाई , मरम्मत करना , पुननिर्माण , पुन: इंजीनियरिंग आदि को भी विनिर्माण मान लिया गया है। इसका मतलब है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र में वास्तविक उत्पादन न हो कर कहीं और हो , सिर्फ वहाँ एक मामूली गतिविधि की इकाई डालकर तमाम कर-छूटों का लाभ उठाया जा सकता है।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ बनाने के लिए कोई भी सरकारी या निजी कंपनी आवेदन कर सकती है। राज्य सरकार से सहमति लेने के बाद केन्द्र सरकार को आवेदन किया जा सकता है। इन आवेदनों पर शीघ्र फैसला लेने के लिए , इसे काफ़ी प्राथमिकता देते हुए भारत सरकार ने रक्षा मन्त्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता मे मन्त्रियों की एक समिति बना दी है , जिसे ‘ मन्त्रियों का अधिकार प्राप्त समूह ‘ नाम दिया गया है। इन ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ के लिए जमीन हासिल करने का काम वैसे तो इन्हें विकसित करने वाली कंपनियों को स्वयं खुले बाजार में करना चाहिए। लेकिन इन्हें सुविधा देने की होड़ में लगी राज्य सरकारें स्वयं भूमि अधिग्रहित करके सस्ती दरों पर इन्हें दे रही हैं। बाजार की प्रचलित दरों से काफी कम दरों पर जमीन मिलने से इन कंपनियों की पौ-बारह हो गयी है।
खूब कमाई , करों से मुक्ति , सस्ती जमीन आदि कारणों से ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ बनाने के लिए अचानक दौड़ व होड़ मच गयी है। विशेष आर्थिक क्षेत्र का कानून बनने से पहले भारत में पन्द्रह विशेष आर्थिक क्षेत्र काम कर रहे थे - कांडला , सूरत , मुम्बई , कोच्चि , नोएडा , विशाखापत्तनम , इन्दौर , जयपुर , फाल्स , मनिकंचन , साल्ट लेक , और चेन्नई में तीन। अब लगभग १६४ नए प्रस्ताव केन्द्र सरकार स्वीकृत कर चुकी है। इनमें ‘ तेल व प्राकृतिक गैस आयोग ‘ तथा ‘ गुजरात औद्योगिक विकास विगम ‘ के प्रस्तावों को छोड़ कर बकी सब निजी कंपनियों के प्रस्ताव हैं। देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी की रिलायंस कम्पनी इनमें सबसे आगे है जिसके द्वारा नवी मुम्बई , हैदराबाद , गुड़गाँव (हरियाणा) और जामनगर (गुजरात) में विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित किए जा रहे हैं। कलकत्ता के पास बनाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से भी उसकी वार्ता चल रही है। एस्सार , भारत फोर्ज , अदारी , विप्रो , सत्यम , बायोकोन , बजाज , नोकिया , केदिला , डा. रेड्डी आदि उद्योग जगत के अनेक बड़े नाम विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने में लग गए हैं। दिल्ली से नजदीकी के कारण हरियाणा व पंजाब में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लगभग ५० प्रस्ताव आ चुके हैं। मात्र गुड़गाँव के पास १२ विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के प्रस्ताव हैम , जिनमें आठ को स्वीकृति मिल चुकी है। गुजरात में १९ विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लगभग ५० प्रस्ताव विचाराधीन हैं। यह दावा किया जा रहा है कि जो १४८ प्रस्ताव पहले स्वीकृत हुए हैं , वे कुल ४०,००० हेक्टेयर (अर्थात एक लाख एकड़) क्षेत्र में फैले हुए होंगे और उनमें १,००,००० करोड़ रुपए का पूंजी निवेश होगा तथा उससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ के नाम पर ये उम्मीदें , दावे और खुशफ़हमियाँ काफ़ी सन्देहास्पद हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि निर्यात - संवर्धन के नाम पर बनाए जा रहे इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किसानों और गाँवों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है तथा उन्हें उजाड़ा जा रहा है। मुम्बई के पास नवी मुम्बई से लगा ३५००० एकड़ का रिलायन्स का ‘ महामुम्बई विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ तो इतना विशाल है कि यह मुम्बई महानगर के एक तिहाई क्षेत्रफल के बराबर है। इनमें ४५ गाँवों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है। एक बार पहले ८० के दशक में ‘नवी मुम्बई’ बनाने के लिए वहाँ विस्थापन हो चुका है। यह दूसरा विस्थापन है। इससे अनेक किसान ,मछुआरे , नमक - मजदूर और अन्य गाँववासी बरबाद हो जाएंगे। उनकी जमीन की कीमत लगभग २० से ४० लाख रुपये प्रति एकड़ है , किन्तु महाराष्ट्र सरकार सवा लाख से लेकर १० लाख रु. एकड़ की दर से उनकी जमीन ले कर रिलायन्स को देने की कोशिश में लगी है। यह कहा जा रहा है कि यह दुनिया क सबसे बड़ा ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ होगा। किन्तु उस क्षेत्र के लोगों के लिए तो यह सबसे बड़ा संकट बन गया है। इस प्रोजेक्ट का विरोध करने के लिए उन्होंने ‘ महामुम्बई शेतकरी संघर्ष समिति ‘ का गठन कर लिया है और विरोध में आन्दोलन शुरु कर दिया है। [ जारी ]

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