मंगलवार, दिसंबर 12, 2006

आदिवासियों ने दिखाई गांधीगिरी

साभार :दैनिक भास्कर,शनिवार २५ नवम्बर २००६
आदिवासियों ने नर्मदा तट पहुंच पूजा - अर्चना की और गांधीजी के प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना कर आंदोलन शुरु किया
होशंगाबाद. सतपुडा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसे हजारों आदिवासियों ने जल , जंगल , जमीन के लिए गांधीगिरी अपनाई है . वन अधिकारियों की सदबुद्धि के लिए अनोखा आंदोलन छेड दिया है . आदिवासियों ने नर्मदा की पूजा अर्चना के बाद गांधी प्रतिमा पर प्रार्थना कर रैली निकाली और सतपुडा टाइगर रिजर्व के दफ्तर के सामने कीर्तन कर पूजा अर्चना किया. यह क्रम एक माह तक जारी रहेगा .
जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को वनों से हटाया जा रहा है . इसके विरोध में आदिवासियों ने एक माह का सदबुद्धि आंदोलन शुक्रवार सुबह नर्मदा घाट से शुरु किया . आदिवासियों के इस आंदोलन में किसान आदिवासी संगठन और समाजवादी जनपरिषद के नेताओं के अलावा जैन मुनि विनय सागर भी मौजूद थे . आदिवासियों की मांग है कि सतपुदा राष्ट्रीय उद्यान , बोरी अभयारण्य तथा पचमढ़ी अभयारण्य को मिला कर सतपुडा टाइगर रिजर्व बनाया गया है . तीनों के अन्दर ७५ गांव हैं . इतने ही गांव इनकी सीमा पर हैं . वन विभाग ने पाबंदी लगा कर वहां रहना गैर कानूनी कर दिया है .
इससे हजारों आदिवासियों की जिन्दगी संकट में है . वनों से वनोपज संग्रह , निस्तार , पशुओं की चराई और खेती पर भी रोक लगा दी गयी है . आदिवासी इस पाबंदी को हटवाने के लिए २२ दिसंबर तक होशंगाबाद में आंदोलन करेंगे . आंदोलन को सदबुद्धि सत्याग्रह नाम दिया है . इसके तह्त शुक्रवार को बारधा , बरचापाडा और मरुआपुरा गांव के सैकडों आदिवासी होशंगाबाद के नर्मदा तट पर एकत्रित हुए .यहां नर्मदा की पूज अर्चना के बाद अस्पताल के सामने गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रैली क्के रूप में सतपुडा टाइगर रिजर्व कर्यालय पहुंचे.यहां सभा के बाद आचार्य विनय सागर के मार्गदर्शन में कीर्तन हुआ . तत्पश्चात आदिवासियों ने ग्यापन सौंपकर अपनी समस्यांए बताइं .उधर सतपुडा टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक एस.एस. राजपूत का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में गैर वानिकी कार्य पूर्णतया प्रतिबंधित है . उच्चतम न्यायालय के आदेश का ही परिपालन किया जा रहा है .
‘मछुआरों का शिकार करना हिंसा नहीं’ -आदिवासियों के आंदोलन में शामिल जैन मुनि विनय सागर ने कहा कि मछुआरों द्वारा मछली मारना वैसे तो हिंसा है किंतु यदि इनके अधिकारों से वंचित किया गया तो त यह मछली मारने से बडी हिन्सा होगी . यदि सरकार आदिवासियों के लिए रोजगार का वैकल्पिक इंतजाम करती है तो मैं मछली मारने को हिन्सा ही मानूंगा और आदिवासियों को मचली ना मारने के लिए प्रेरित करूंगा .

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