क्रांतिकारी दिनेश दासगुप्त :ले. अशोक सेकसरिया
जन्म ५नवंबर १९११ ,
निधन २३ अगस्त २००६
दिनेश दासगुप्त : एक परिचय , लेखक - अशोक सेकसरिया
अगर सच्चे अर्थों में किसी को क्रांतिकारी समाजवादी कहा जा सकता है तो दिनेश दासगुप्त के नाम का स्मरण आयेगा ही . १६ वर्ष की उम्र में वे मास्टरदा सूर्य सेन के क्रांतिकारी दल से जुडे तो अंत तक समाजवादी आंदोलन से . दिनेशदा की राजनीति आजादी के पहले देश को गुलामी से मुक्त करने की थी और आजादी के बाद देश में एक समतावादी समाजवादी समाज स्थापना की . इस संघर्षशील राजनीति में उन्होंने गुलाम भारत में और आजाद भारत में बार - बार कारावास वरण किया .
दिनेश दासगुप्त का जन्म ५ नवंबर १९११ को हुआ . १६ वर्ष की उम्र में वे मास्टरदा सूर्य सेन की इंडियन रिपब्लिकन पार्टी में भर्ती हो गये और अप्रैल १९३० के चट्गांव शस्त्रागार अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया . चटगांव शस्त्रागार अभियान के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ धौलाघाट में गुरिल्ला युद्ध में वे ब्रिटिश सेना द्वारा गिरफ़्तार कर लिये गए और उन्हें दस साल की जेल की सजा दे कर १९३२ में अंडमान सेल्यूलर जेल भेज दिया गया . इस जेल में उन्होंने कई बार भूख हडताल की . १९३८ में दिनेशदा और उनके सथी रिहा किए गए तो कुछ साथी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए पर दिनेशदा के मन में अंडमान जेल में रहते सरकार द्वारा अंडमान बंदियों के बीच मार्क्सवादी साहित्य के वितरण और अपने कुछ साथियों के देश की आजादी की लडाई को प्राथमिकता न देने के कारण कम्युनिस्टों के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया और वे कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल न हो कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गये और चटगांव जिले में कांग्रेस सोशलिस्ट पर्टी का संगठन बनाने में जुट गये . १९४० में रामगढ कांग्रेस से लौटते हुए उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और १९४६ में कांग्रेस के सारे नेताओं की रिहाई के बाद उन्हें रिहा किया गया . छह साल के कारावास में उन्हें हिजली (मेदनीपुर ) जेल , भूटान के निकट बक्सा किले और ढाका जेल में रखा गया.इस कारावास में भी उन्होंने भूख हडतालें कीं .
आजादी के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की पश्चिम बंगाल शाखा और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी , संसदीय बोर्ड के सदस्य और सेक्रेटरी व अध्यक्ष के पद पर बैठाये गये . किसी पद पर बैठना दिनेशदा ने कभी नहीं चाहा . पदों के लिए झगडा होने पर उन्हें पद पर बैठना पडता था . १९७७ में जनता पार्टी की सरकार बनी तो कुछ साथियों ने उनसे आग्रह किया कि वे ओडिशा या बिहार का राज्यपाल बनें तो उन्होंने इन साथियों को झिडक कर कहा कि क्या तुम लोग मुझे सफेद हाथी बनाना चाहते हो . दिनेश दा अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो एक साथ नेता और कार्यकर्ता दोनों थे .
जब डॊ. रममनोहर लोहिया ने प्रजा सोशलिअट पार्टी से अलग हो कर सोशलिस्ट पर्टी की स्थापना की तो दिनेश दा उसमें चले आये . सोशलिस्ट पार्टी के सारे आंदोलनात्मक कार्यों में वे मनप्राण से जुटे रहे . इन आंदोलनों में उन्होंने बार - बार कारावास वरण किया . अंग्रेजी हटाओ आंदोलन , दाम बांधो आंदोलन , ट्रेड यूनियन आंदोलन ,मेहतर आंदोलन , आदिवासी आंदोलन आदि में वे लगातार सक्रिय रहे . बांग्ला में लोहिया साहित्य प्रकाशन के लिए उन्होंने राममनोहर लोहिया साहित्य प्रकाशन की स्थापना की .
१९७१ में बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में वे लगातार सक्रिय रहे . उन्होंने मुक्ति युद्ध के दौरान कई बार बांग्लादेश की गुप्त यात्राएं की . शेख मुजीबुर रहमान तक ने बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में उनके अवदान की चर्चा की थी . १९७५ में एमरजेन्सी में जेल से रिहा होने के बाद वे जनता पार्टी में शामिल हुए . जनता पार्टी के भंग होने के बाद वे ज्यादातर आदिवासियों के बीच काम करते रहे .
२००४ तक दिनेश दा पूरी तरह सक्रिय रहे . १५ अगस्त २००३ को स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने जो स्वागत समारोह आयोजित किया था,उस उस समारोह में वे सिर्फ इस उद्देश्य से गये थे कि राष्ट्रपति से सीधे निवेदन करें कि अंडमान शहीद पार्क का सावरकर पार्क नामांतरण रद्द किया जाए.उन्होंने राष्ट्रपति को स्पष्ट शब्दों में कहा शहीद पार्क में सावरकर की मूर्ति बैठाना तो शहीदों का घोर अपमान है क्योंकि सावरकर शहीद तो हुए ही नहीं उलटे उन्होंने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगकर जेल से मुक्ति पायी और फिर देश के स्वाधीनता संग्राम में भाग ही नही लिया . इसी आशय का एक पत्र उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी लिखा .
२००४ से दिनेश दा बीमार रहने लगे और दो बार तो मरते मरते बचे . आजीवन अविवाहित दिनेश दा की पिछले दस वर्षों से श्री अनाथचन्द्र सरकार ,उनकी पत्नी माया सरकार , दोनों बेटियां चुमकी और पिंकी ने जो सेवा की वह अविस्मरणीय है . सारे समाजवादी ,अनाथचन्द्र सरकार परिवार के प्रति कृतग्य है .
इस २३ अगस्त २००६ को दिनेश दा चले गए लेकिन आजाद भारत में समाजवादी समाज का उनका सपना अभी भी बन हुआ है .
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