सोमवार, सितंबर 25, 2006

परिचर्चा पर बहस जारी है

कृपया इस प्रविष्टि को नीचे से ऊपर पढें
--------------------------------------------------------------------------------
खालीपीली
आसक्त

From: चेन्नई
Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीसिर्फ एक ही बात कहना चाहुंगा ! मातृभाषा का सम्मान जरूरी है। हिन्दी का सम्मान करना चाहिये ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहिये। लेकिन इसकी आड मे किसी और भाषा का विरोध सही नही है।
आमतौर पर हिन्दी समर्थक अंग्रेजी विरोध पर उतर आते है जो कि गलत है। अंग्रेजी एक अंतराष्ट्रीय भाषा है जो एक सत्य है और हमे इसे स्वीकार करना होगा।
अपने बच्चो को आप जिस भाषा मे भी शिक्षा देना चाहे दिजिये लेकिन उसे मातृभाषा की शिक्षा भी दिजीये। उसे अपनी मातृभाषा के साहित्य से परिचित कराईये। हो सके तो उसे कोई तिसरी या चौथी भाषा भी सिखाईये।


--------------------------------------------------------------------------------
आशीष
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं !
http://ashish.net.in/khalipili
Offline
Report | Quote
#15 23-09-2006 12:22:54
खालीपीली
आसक्त

From: चेन्नई
Registered: 11-05-2006
Posts: 163
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीएक बात और : ये एक भ्रम है कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थीयो को पिछडा समझा जाता है। मैने १२ वी तक हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की है।
मुझे ऐसा कभी महसूस नही किया है।


--------------------------------------------------------------------------------
आशीष
जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं !
http://ashish.net.in/khalipili
Offline
Report | Quote
#16 23-09-2006 14:19:31
amit
Your Lord & Master, Foamy

From: आकाशगंगा के दूसरे छोर पर
Registered: 22-04-2006
Posts: 581
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीअफ़लातून wrote:
अमित भाई,भागना मत,अभी उच्च ग्यान पर भी 'असला' का तसला लिए बैठे हैं.

भागना हमने नहीं सीखा, आपकी बात मैं नहीं जानता, लेकिन इतना है कि अभी हम आराम से बैठे मौज से आप लोगों का आलाप सुन/पढ़ रहे हैं, जब हम शुरू होंगे तो भागने की जगह आपको नहीं मिलेगी ऐसा हमारा मानना है।


--------------------------------------------------------------------------------
अमित गुप्ता -- प्राईवेट संदेश भेंजें
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Canned!! -- my Atropine :: magic-I :: छायाचित्र :: diGit Blog
Offline
Report | Quote
#17 Yesterday 04:39:39
rachana
सदस्य
From: Nasik
Registered: 05-08-2006
Posts: 66
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भी"सिर्फ एक ही बात कहना चाहुंगा ! मातृभाषा का सम्मान जरूरी है। हिन्दी का सम्मान करना चाहिये ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहिये। लेकिन इसकी आड मे किसी और भाषा का विरोध सही नही है।"
आशीष जी, मैं आपकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ..हिन्दी का सम्मान करने के लिये किसी और भाषा का अपमान करें ये ठीक नही है..और विभीन्न भाषाएँ सीखने की आपने जो बात कही, तो मै समझती हूँ हम भारतीय स्वाभाविक रूप से बहुभाषी होते हैं..आम पढे लिखे भारतीय को सम्भवत: ४ भाषाएँ आती है..हिन्दी,अन्ग्रेजी,अपनी भाषा(घर मे बोली जाने वाली) और जिस प्रदेश मे वह काम करता है..यदि ये सब वह बोल नही पाता तो कम से कम समझ तो लेता ही है..
"एक बात और : ये एक भ्रम है कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थीयो को पिछडा समझा जाता है। "
इस सिलसिले मे पिछ्ले दिनों एक खबर चली थी कि १० वीं मे ९७% अंक मिलने पर भी एक छात्रा को, दिल्ली की एक स्थापित शाला मे प्रवेश से इन्कार कर दिया क्यों कि वो "फर्राटेदार" अन्ग्रेजी बोल पाने मे असमर्थ थी..बाद मे बहुत किरकिरि होने पर उसे प्रवेश दिया गया,,जो शायद उसने ठुकरा दिया..ठीक उसी दिन मैने टी वी पर देखा कि हमारे एक केन्द्रिय मन्त्री "मीडीया" से बात करते हुए कह रहे थे कि उनसे प्रश्न सिर्फ अन्ग्रेजी मे पूछे जाएँ,वो हिन्दी नही समझ पाते!!
और आपने कहा कि आप १२ वी तक हिन्दी मे पढे हैं,मुझे लगता है
कि जिन लोगों कि वजह से भारत मे "बूम" हुई है वे ज्यादातर लोग
१२वी तक हिन्दी मे ही पढे होंगे!

Offline
Report | Quote
#18 Yesterday 04:47:16
अफ़लातून
नवीन सदस्य
From: Varanasi
Registered: 19-09-2006
Posts: 15
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीभाषा विशेष से चिढने का सवाल नहीं है,न कभी था.शासन और शोषण के औजार के रूप में भाषा के प्रयोग का विरोध है .गांधी और लोहिया भी भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करते थे.उसके स्थान पर जरूर बहस चलाते थे.
"अंग्रेजी आन्तर-राष्ट्रीय व्यापार की भाषा है , वह कूट्नीति की भाषा है,उसका साहित्यिक भंडार बहुत समृद्ध है और वह पश्चिमी विचारों और संस्कृति से हमारा परिचय कराती है .इसलिए हम में से कुछ लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा का ग्यान आवश्यक है . वे लोग राष्ट्रीय व्यापार और आन्तर-राष्ट्रीय कूट्नीति के विभाग तथा हमारे राष्ट्र को पश्चिमी साहित्य ,विचार और विग्यान की उत्तम वस्तुएं देने वाला विभाग चला सकते हैं! वह अंग्रेजी का उचित प्रयोग होगा , जब कि आज अंग्रेजी ने हमारे हृदयों में प्रिय सेप्रिय स्थान हडप लिया है और हमारी मतृभाषाओं को अपने अधिकार के स्थान से हता दिया है . अंग्रेजी को जो यह अस्वाभाविक स्थान मिला गया है , उसका कारण है अंग्रेजों के साथ हमारे असमान संबन्ध . अंग्रेजी के ग्यान के बिना भी भारतीयों के दिमाग का ऊंचे से ऊंचा विकास होना चहिए हमारे लडकों और लडकियों को यह सोचने के लिए प्रोत्साहित करना कि अंग्रेजी के ग्यान के बिना उत्तम समाज में प्रवेश नही मिल सकता , भारत के पुरुषत्व और्खास करके स्त्रीत्व की हिंसा करना है. (यंग इंडिया ,२.२.१९२१)
"अंग्रेजी को कहां से हटाना है? इसके बारे में पढे लिखे लोग मजाक कर दिया करते हैं . मैं साफ़ कर देना चाहता हूं कि हमारा यह मक़सद नही है कि इंग्लिस्तान या अमेरिका से अंग्रेजी को हटाया जाए.वहां यह भाषा अच्छी है,बढिया है,कभी कभी मुझे भी वहां बोलने में मज़ा आता है.हिन्दुस्तान में भी इसे पुस्तकालयों से नही हटाना है.पुस्तकालयों में अंग्रेजी भी रहे ,हिन्दुस्तानी के अगल बगल में जर्मन रहे ,रूसी रहे.और ये ही क्यों रहें,चीनी रहे ,अरबी रहे ,फ़ारसी भी रहे.
लेकिन आज सरकार के मालिक बहस को ईमान्दारी से चला नहीं रहे हैं .
...अंग्रेजी को हटाना है अदालत से.अंग्रेजी को हताना है उच्च न्यायालय से,सर्वोच्च न्यायालय से,सरकारी दफ़्तरों से,रेल - तार-पल्टन से,हिन्दुस्तान के हर एक सार्वजनिक काम से-जिसमें कि हिन्दुस्तान का हर एक सार्वजनिक काम अपनी मातृभाषा के माध्यम से हो सके.इस पर बहस करो." लोहिया,हैदराबाद,१९६२
.."साधारण तौर पर देश में अंग्रेजी हटाओ वालों को यह कहके बदनाम किया जाता है कि ये तो हिन्दी वाले हैं.यह बात अब बिलकुल साफ़ हो गयी है कि हम तेलगु वाले भी हैं , हम तमिल वाले भी हैंहम बंगाली वाले भी हैं..अंग्रेजी हटाने का मतलब है हिन्दी को चलाना,तो मै यह ही कहूंगा कि वे जानबूझकर इस धोखेबाजी को फैला रहे हैं." लोहिया,हैदराबाद,१९६२(सागर भाई ,इसी प्रचार के कारण जयललिता जैसे चिढते हैं.बहरहाल अंग्रेजी के कारण होने वाले नुकसान को अब दक्षिण मे भी समझा जा रहा है.हैदराबाद में किसी समय चिकित्सा विग्यान की पूरी पढाई उर्दू मे होती थी.महाराष्ट्र के औरंगाबाद या मराठवाडा इलाके में इसीलिए लोग राज्य के अन्य इलाकों से बेहतर हिन्दुस्तानी समझी-बोली जाती है.)


--------------------------------------------------------------------------------
समाजवादी जनपरिषद,उ.प्र.
http://samatavadi.blogspot.com
http://samatavadi.wordpress.com
http://samajwadi.blogspot.com
Online
Report | Delete | Edit | Quote
#19 Yesterday 07:29:23
nahar7772
ज्ञानी आत्मा

From: हैदराबाद, भारत
Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीखालीपीली wrote:
एक बात और : ये एक भ्रम है कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थीयो को पिछडा समझा जाता है। मैने १२ वी तक हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की है।
मुझे ऐसा कभी महसूस नही किया है।

आशीष भाई
"जाके पैर ना फ़टे बिवाई"........ वाली बात है यह मैने अपनी बात कही थी यह सारे लोगों के लिये लागू नहीं होती और एक घटना तो रचना जी ने बता भी गी है।बाकी अब एक दो घटनाओं का वर्णन चिट्ठे पर करूंगा, जिसमें अंग्रेजी के जानकार किस तरह हिन्दी को दोयम दर्जे की मानते हैं बताने का प्रयास करूंगा।
मैने भी यह नहीं कहा की अंग्रेजी नहीं पढ़ना चाहिये मुझे खुद को अंग्रेजी नहीं जानने का दुख: है, जिसकी वजह मैं आगे लिख भी चुका हुँ, देखें:


कभी कभी यह लगता है कि मुझे अंग्रेजी का सामान्य ज्ञान तो होना ही चाहिये क्यों कि अन्तरजाल पर जो खजाना भरा पड़ा है उसका मैं पूरा लाभ नहीं उठा पाता।

मैने आगे यह लिखा था देखें:


हमारी शिक्षा का माध्यम हमारे देश की भाषा ही होना चाहिये नहीं कि विदेशी भाषा! साथ में अंग्रेजी भी होनी चाहिये परन्तु पूरक के रूप में,नहीं की मुख्य भाषा के रूप में।

पता नहीं अक्सर यह क्यों होता है कि हिन्दी के समर्थन की बात को अंग्रेजी का विरोध मान लिया जाता है।


--------------------------------------------------------------------------------
सागर चन्द नाहर

Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीnahar7772 wrote:
पता नहीं अक्सर यह क्यों होता है कि हिन्दी के समर्थन की बात को अंग्रेजी का विरोध मान लिया जाता है।

सागर जी, ऐसा नहीं है कि हिन्दी के समर्थन को अंग्रेज़ी का विरोध माना जाता है, परन्तु जब सीधे सीधे कहा जाए कि अंग्रेज़ी क्यों सीखें और "अंग्रेज़ी सीख कौन सा किला फ़तह कर लिया या कर लोगे" तो उसे और क्या समझा जाए? हिन्दी समर्थन ऐसी टुच्ची टिप्पणियों के बगैर भी किया जा सकता है। गांधी के समय की बात करना हर रूप में जायज़ नहीं है। उनके समय में भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था और वे लोग अंग्रेज़ों की प्रत्येक चीज़ का विरोध करते थे, भाषा को क्यों छोड़ते भला? उस समय में भारत उतना विकसित नहीं था जितना आज है।

लोग चीन, जापान, रूस, इस्राईल आदि का उदाहरण देते हैं कि उन्होंने अपनी भाषा के द्वारा ही इतनी तरक्की करी और भारत अंग्रेज़ी के चक्कर में पड़ा यह ना कर पाया। इसे सीधे सीधे अंग्रेज़ी पर बेवजह आघात नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? अंग्रेज़ी भाषा तो नहीं कहती कि हम उसे सीखें और प्रयोग करें, तो उसे उलाहना क्यों? जो लोग इन देशों की तरक्की का ढोल पीटते हुए अपने देश के पिछड़ा होने का दोष अंग्रेज़ी मोह पर लादते हैं क्या उन्हें इतनी समझ नहीं कि चाहे चीन हो या जापान, रूस हो या इस्राईल, इन देशों में जिस कार्य को करने का निर्णय लिया जाता है वह किया जाता है, हमारे देश की तरह लालफ़ीताशाही और नौकरशाही के जाल में फ़ंस वह दम नहीं तोड़ता। चीन तरक्की पर इसलिए है कि वहाँ पर यहाँ की तरह नेता लोग मौज नहीं लेते, हुक्मउदुली की सज़ा वहाँ केवल एक है। चोरी करने जैसे अपराध पर जहाँ गोली मार दी जाती है वहाँ लोग अपना काम करते हैं, टाईमपास नहीं करते। कहने का अर्थ है कि उनकी तरक्की का भाषा से कोई लेना देना नहीं है। यदि ऐसा ही होता तो जापान में लोग आज भी पुराने समय के जैसे किमोनो पहन घूम रहे होते ना कि पश्चिमी कपड़े!!

आसक्त

From: नागौर, राजस्थान
Registered: 05-09-2006
Posts: 106
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीnahar7772 wrote:
पता नहीं अक्सर यह क्यों होता है कि हिन्दी के समर्थन की बात को अंग्रेजी का विरोध मान लिया जाता है।

नाहरजी मैं आपकी बात से सहमत हूँ ॰॰॰

कोई भाषा प्रेमी नहीं चाहेगा कि अन्य भाषा का विरोध किया जाये परन्तु इसका यह मतलब नहीं कि अपनी भाषा का अस्तीत्व खो रहा हो तो उसे बचाने की चेष्ठा भी ना करे। हिन्दी प्रेमी अगर चाहते हैं कि हिन्दी भाषा को भी उतना ही सम्मान मिलें जितना अंग्रेजी भाषा को मिल रहा है तो इसमें बुरा क्या है???

आखीर अपनी भाषा की उन्नति देखना कौन नहीं चाहता???


--------------------------------------------------------------------------------

E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीgrjoshee wrote:
कोई भाषा प्रेमी नहीं चाहेगा कि अन्य भाषा का विरोध किया जाये परन्तु इसका यह मतलब नहीं कि अपनी भाषा का अस्तीत्व खो रहा हो तो उसे बचाने की चेष्ठा भी ना करे। हिन्दी प्रेमी अगर चाहते हैं कि हिन्दी भाषा को भी उतना ही सम्मान मिलें जितना अंग्रेजी भाषा को मिल रहा है तो इसमें बुरा क्या है???

कोई बुराई नहीं है, लेकिन दूसरी भाषा ने आपका क्या बिगाड़ा है जो उसे भला-बुरा कहा जाए? आपकी भाषा को कोई ऐसे भला-बुरा कहे तो कैसा लगेगा? यकीनन अच्छा नहीं लगेगा, क्यों? तो दूसरी भाषा के साथ भी हमें खुद ऐसा नहीं ना करना चाहिए। अपनी भाषा का प्रचार, उसके अस्तित्व को बचाने के लिए किसी दूसरी भाषा को नीचा दिखाना या उसे भला बुरा कहना कहीं से भी उचित नहीं है।



E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीअमितजी आपकी बातों से हिन्दी विरोधी होने की बू आ रही है ॰॰॰

हमने कभी यह नहीं कहा कि अंग्रेजी का उपयोग जायज नहीं मगर हिन्दी भाषा को हेय दृष्टि से देखा जाए, यह भी सहन नहीं करेंगे ॰॰॰


अफ़लातून
नवीन सदस्य
From: Varanasi
Registered: 19-09-2006
Posts: 15
E-mail PM Website Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भी-"गांधी के समय की बात करना हर रूप में जायज़ नहीं है। उनके समय में भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था और वे लोग अंग्रेज़ों की प्रत्येक चीज़ का विरोध करते थे, भाषा को क्यों छोड़ते भला?"
--"इसे सीधे सीधे अंग्रेज़ी पर बेवजह आघात नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? अंग्रेज़ी भाषा तो नहीं कहती कि हम उसे सीखें और प्रयोग करें, तो उसे उलाहना क्यों? जो लोग इन देशों की तरक्की का ढोल पीटते हुए अपने देश के पिछड़ा होने का दोष अंग्रेज़ी मोह पर लादते हैं क्या उन्हें इतनी समझ नहीं कि चाहे चीन हो या जापान, रूस हो या इस्राईल, इन देशों में जिस कार्य को करने का निर्णय लिया जाता है वह किया जाता है, हमारे देश की तरह लालफ़ीताशाही और नौकरशाही के जाल में फ़ंस वह दम नहीं तोड़ता। "
-गांधी अंग्रेज लोगों का विरोध नहीं करते थे.
-उलाहना भाषा को नहीं,भाषा नीति का विरोध होता है जिसकी वजह से किसी देश की शिक्षा का माध्यम,सरकारी और अदालती काम-काज की भाषा आदि गुलाम मानसिकता वाले नीति नियंताओं द्वारा थोपे जाते हैं.
-पिछडेपन का कारण सिर्फ़ भाषा नहीं,विकास-नीति भी है.ज्यादा समय तक गुलाम रहने वाले देशों और कम समय तक या न के बराबर गुलाम रहने वाले देशों के चरित्र मे एक भिन्नता होती है.पहली किस्म के लोग अपने निर्णय से कठिन काम नही कर सकते.गुलाम व्यक्ति आदेश मिलने पर कठिन कार्य करता है,अनिच्छा से करता है,उसमे उसे रस नही मिलता.इस तरह कठिन काम के प्रति अनिच्छा उसका स्वभाव बन जाती है.बाद में जब देश आजाद हो जाता है,तब भी वह कठिन काम,कठोर निर्णय से भागता है.कठिन काम करने में जो रस है तृप्ति है,उसे वह समझ नही पाता.'कठिन' और 'असंभव' को वह कई पर्याय्वाची मानने लगता है.मूल योजना मालिक बनात है.कार्यान्वयन क्र स्तर पर नौकर भी बहुत सारे परिवर्तन और निर्णय करने का अधिकार ले लेता है.सामूहिक गुलामी की आदत सेभी कुछ ऐसा ही स्वभाव पैदा होता है कि योजना की दिशा या मूल सिद्धान्त के बारे में वह सोचना नही चाहता.,उसकी कोशिश भी नही करता.
--गुलामी में एक सुरक्षा है.अनुकरण और निर्भरता में एक सुरक्षा है--खासकर बौद्धिक निर्भरता में.इसलिए उसकी लत लग जाती है.
अमित जैसी गलती करना काफ़ी व्यापक बीमारी है.इसे तर्क्शास्त्र में तर्कदोष या हेत्वाभास (हेतु + आभास ) कहा जाता है.अंग्रेजी में -fallacy. जैसे कुछ भारतीय बुद्धिजीवी कहते हैं कि १८५७ कि क्रान्ति सफल हो जाती तो भारत का बहुत नुकसान हो जाता.
--गुलाम कुशाग्र बुद्धि का हो सकता है जैसे अमित लेकिन जहां विचार से निर्णय निकालना पडता है,वहीं वह आश्चर्यजनक ढंग से तर्क की गलती करता है.
--आखिरकार मानसिक गुलामी एक अस्वाभाविक स्थिति है.


--------------------------------------------------------------------------------
neerajdiwan
समझदार बंधु


Re: भाषा पर गांधी : एक बहस ,अब 'परिचर्चा' पर भीएक सवाल - क्या हिन्दी के दम पर विदेश में रहने वाले हमारे भाई रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं? क्या आप मुझे सिर्फ़ हिन्दी के भरोसे इतनी तनख्वाह दे सकते हैं जो फिलवक़्त मैं कमा रहा हूं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें