सोमवार, सितंबर 04, 2006

पानी की जंग पर राष्ट्रीय सम्मेलन

साझा संस्कृति मंच तथा जनान्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा आयोजित ' पानी की जंग ' विषयक राष्ट्रीय सम्मेलन में पारित लोक संकल्प दिनांक ३० जून ,२००६, स्थान - सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ,वाराणसी


हमारी अमूल्य जल - निधि को लूटने वाली ,प्रदूषणकारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से पीडित किसानों ,महिलाओं ,बुनकरों तथा सामाजिक - राजनैतिक कार्यकर्ता , समर्थक समूहों ,शैक्शिकजनों,शोधकर्ता व संस्क्रुतिकर्मियों का समावेश यह लोक संकल्प व्यक्त कर रहा है -

(१) हमारी स्पष्ट मान्यता है कि पानी किसी की सम्पत्ति नहीं , कुदरत की देन है और इसलिये इस पर सबका अधिकार है.हांलाकि सवर्ण जातियों द्वारा दलितों को पानी से वंचित करना इस नज़रिये का दुखद अपवाद रहा है.
(२) हमारे देश का साझा संवैधानिक द्रुष्टिकोण है कि एक कल्याणकारी राज्य की बुनियादी जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों के लिये जीने का अधिकार तथा पानी जैसे अनिवार्य साधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करे.
(३) भारतीय संविधान के ७४वें संशोधन समेत मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत पानी का कामकाज ग्राम पंचायतों व शहरी निकायों द्वारा संचालित होगा.
यह तीनों अवधारणांए भारत में पानी के बाजार के निर्माण तथा मुनाफ़ाखोर कंपनियों के पूर्ण नियंत्रण के आडे आते हैं.जब तक पानी के बारे में यह विचार नही बदलते,पानी का धंधा पूरी तरह से नही चल पायेगा.
पानी की बाबत इन बुनियादी उसूलों पर चोट करने और मुनाफ़ाखोर कम्पनियों की लूट के दरवाजे खोलने के लिये -
(१)विश्व बैंक का जल संसाधन रणनीति मसौदा (मार्च २००२) कहता है : "सुधरी हुई सेवाएं उन बाज़ार आधारित नियमों को आगे बढाएंगी जिनके तहत पानी का अधिकार स्वैच्छि्क रूप से अस्थाई या स्थाई तौर पर कम पैसे वाले उपभोक्ताओं से ज्यादा पैसे वाले उपभोक्ताओं को हस्तान्तरित करना आसान हो जायेगा."
(२)विश्व व्यापार संगठन के सेवाओं के स्वतन्त्र व्यापार हेतु बने नियमों ( गैट्स ) के तहत सदस्य देशों को पानी की आपूर्ति जैसी सार्वजनिक सेवाओं के उदारीकरण के कार्यक्रम के प्रति प्रतिबद्धता जतानी पडती है .पानी आपूर्ति का स्पष्ट उल्लेख न होने के बावजूद गैट्स के तहत ऐसे नियम बना दिये गये हैं जिनकी वजह से नियन्त्रण हटाने और निजीकरण की परिस्थिति बन जाये.मसलन एक नियम के तहत इन विदेशी कम्पनियों के मूल देश हमारे देश के ऐसे कानूनों,नीतियों और कार्यक्रमों को चुनौती दी जा सकती है जिन्हे वे सेवाओं की बिक्री मे बाधा मानते हैं. यह नियम शासन के हर स्तर - राष्ट्रीय, प्रान्तीय अथवा स्थानीय स्तर पर लागू होते है.
(३) एशियाई विकास बैंक के भारत में एक परियोजना दस्तावेज के मुताबिक यह स्पष्ट करना जरूरी है कि - " पानी अब कुदरत की देन नही बल्कि ऐसा संसाधन है जिसका ' चुस्त प्रबन्ध ' होना चाहिये." दरअसल बैंक चाहता है कि पानी का 'बेहतर प्रबन्ध' बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के मुनाफ़े के लिये हो.
(४) उत्तर प्रदेश विकास परिषद में देश के एक बडे पूंजीपति अनिल अम्बानी द्वारा प्रदेश के पांच बडे नगरों की जल आपूर्ति व निकासी की व्यवस्था निजी हाथों मे सौंपने के प्रस्ताव पर कार्रवाई शुरु हो चुकी है.
हमारे बुनियादी उसूलों पर लगातार बढ रहे इन हमलों के प्रति सचेत हो कर हम संकल्प करते हैं कि -
(१) पानी के बाजारीकरण , निजीकरण और निगमीकरण के हर आपराधिक प्रयास का कारगर प्रतिरोध किया जायेगा .
(२)जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी .संरक्षण , उपयोग और प्रबन्ध का अधिकार पूरी तरह स्थानीय समुदायों का होगा . जल स्वराज्य का यह बुनियादी आधार है तथा इससे छेड-छाड के सभी प्रयास आपराधिक क्रुत्य होंगे. अपने सबसे मूल्यवान संसाधन की जिम्मेदारी हम सरकार में बैठे नौकरशाहों तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले कत्तई नही छोड सकते .
(३)कोका कोला और पेप्सी कोला कम्पनियों द्वारा जहरीले उत्पादन और विपणन से पर्यावरण नष्ट हो रहा है तथा स्थानीय समुदायों के जीवन पर खतरा बन गया है . इन्हें रोकने के लिए संघर्ष को व्यापक और धारदार बनाया जाएगा .
(४)मेंहदीगंज , प्लाचीमाडा और कालाडेरा जैसे साहसिक प्रतिरोध बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा हमारे संसाधनों की लूट के विरुद्ध संघर्षों का प्रतीक बन चुके हैं . इन भयानक व्यावसायिक शक्तियों के विरुद्ध संघर्षरत किसानों , महिलाओं , आदिवासियों व कारीगरों के आंदोलनों का हम पूर्ण समर्थन करते हैं तथा पूरी दुनिया से इनके उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान करते हैं .
(५) शासन की जिम्मेदारी है कि सभी लोगों को पानी मुहैया कराए . पानी उसकी कीमत चुकाने की औकात के आधार पर नही मिलना चाहिये . घरों , बस्तियों के अलावा रेलवे स्टेशनों पर साफ़ , मुफ़्त पेय जल की व्यवस्था हो ताकि लोग पानी खरीदने के लिये मजबूर न हों .
(६) कम्पनियों द्वारा खेती में निरन्तर अधिकाधिक पानी की खपत के तौर तरीके अपनायें जा रहे हैं . नए बीजों के साथ - साथ नए कीटनाशक , नए उर्वरक और भारी सिंचाई के पैकेज बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सरकारों की मदद से थोपतीं हैं जिसके प्रति सचेत हो कर वैकल्पिक कॄषि के रचनात्मक प्रयासों को आन्दोलनों का स्वरूप दिया जाएगा .
(७) इस सम्मेलन की स्पष्ट राय है कि नदी जोड परियोजना अवैग्यानिक और अलोकतान्त्रिक है . इसके कारण देश के लोगों का बडा नुकसान होगा और नदियां धीरे धीरे मर जाएंगी . इस परियोजना के जो फ़ाएदे गिनाए जा रहे हैं उन्हें साबित करने के लिये सरकार के पास पर्याप्त प्रमाण नही हैं .इस परियोजना के कारण नदियों पर आधारित आबादी के आवास व रोजगार मे भारी कमी होगी .इससे बाढ , जलजमाव , पनी के खारे होने जैसी समस्याएं और ज्यादा होंगी. इस पर बहुत ज्यादा खर्च होगा . इतना खर्च करने के लिये सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों तथा निजी क्षेत्र से धन जुटाना होगा . इसका नतीजा होगा जल का निजीकरण और इसकी कीमतों मे भारी व्रुद्धि . जल के निजीकरण का सीधा नतीजा होगा जल और खाद्य सुरक्षा का खातमा . भारी खर्च के लिये भारी विदेशी कर्ज के कारण देश को आर्थिक व राजनैतिक आज़ादी खोनी भी पडेगी .
प्रस्तावक , अफ़लातून (अध्यक्ष , समाजवादी जनपरिषद,(उ.प्र.))

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