भारत का कुलीकरण (अंतिम) :टेक्नो बाबू का उदय : गंगन प्रताप
टेक्नो बाबू का उदय
भारत जिस किस्म की सूचना टेक्नॉलॉजी (आई.टी.) में लगा है उसे राजेश कोचर ने "सूचना छेड़छाड़" की संज्ञा दी है । " यदि आई.टी. को हम एक नई सायकल डिज़ाइन करने जैसा मानें , तो भारत को जो काम सौंपा गया है वह मात्र पंचर जोड़ने का है ।" कोचर इसे कुलीकरण कहते हैं :
" ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में जो औपनिवेशिक विज्ञान शुरु किया था और जिसमें देशी लोगों को नियुक्त किया गया था , वह प्रयोगशाला विज्ञान नहीं बल्कि मैदानी विज्ञान ( भूगोल,भूगर्भ विज्ञान,वनस्पति शास्त्र और यहाँ तक कि खगोलशास्त्र) था । आज एक सदी बाद फिर पश्चिमी देश लोगों को नियुक्त कर रहे हैं । यह काम देशांतर पर टिका है- पश्चिमी देशों का दिन अब २४ घण्ते का है - अंतर सिर्फ इतना है कि दफ्तर का काम अब ओवर टाइम देकर नहीं करवाया जाता बल्कि एक-तिहाई वेतन देकर करवाया जाता है । "
इस तरह हम टेक्नो-बाबुओं के राष्ट्र बनकर रह गए हैं ।
विचारों के इस पुंज का समापन मैं फ्राइडमैन के एक साक्षात्कार से करना चाहूँगा । यह साक्षात्कार मेरे एक मित्र ने मुझे भेजा था :
" यदि आपका सामान ब्रिटिश एयर या स्विस एयर में गुम हो जाए तो आप इसकी तलाश के लिए फोन करते हैं । जो व्यक्ति जवाब देता है वह बैंगलोर में है । यदि आपके डेल कम्प्यूटर में कोई दिक्कत है और आप फोन करते हैं तो दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति एक भारतीय होगा जो बैंगलोर में बैठा है । यह शहर हर वर्ष विभिन्न इंजीनियरिंग व कम्प्यूटर विज्ञान संस्थाओं से करीब ४०,००० तकनीकी स्नातक तैयार करता है।ये सब किसी न किसी अमरीकी कम्पनी को बैकरूम क्षमता प्रदान करने में खप जाते हैं ,बैंगलोर में बैठे-बैठे।"
जी हां , सिर्फ बैकरूम क्षमताएं , जबकि "केन्द्रीय क्षमताएं" यू.एस. में ही बनी रहती हैं । तो,अब आप समझ गए होंगे कि ए.एम. नाइक को गुस्सा क्यों आता है।जो बात फ्राइडमैन नहीं देख पाते उसे नाइक पकड़ते हैं- देश के सब से होनहार युवा धीरे-धीरे शेष विश्व के लिए टेक्नो कुली बनते जा रहे हैं । आपको उत्तरी अमरीका या युरोप के होशियार युवा किसी भारतीय या चीनी कम्पनी के लिए ऐसी कुलीगिरी करते नहीं मिलेंगे । इंफोसिस और विप्रो का चमत्कार यही है कि उन्होंने देश के सबसे होशियार लड़के-लड़कियों को इकट्ठा करके उन्हें उत्तरी अमरीका , युरोप , और जापान का टेक्नो कुली बना दिया है। सच्चाई यह है कि माइक्रोसॉफ़्ट या ओरेकल या सिस्को एम.आई.टी. और कैलटेक के होशियार स्नातकों को टेक्नो कुली बना बना कर दुनिया की सबसे अमीर कम्पनियाँ नहीं बनीं हैं। ये लोग तब भारत और चीन के लिए काम नहीं करते जब हम नींद में होते हैं ।यह एक ऐसा असंतुलन है जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके चलते वैश्वीकरण तो कुलीकरण का पर्याय हो जाएगा।
( स्रोत फीचर्स )
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