शनिवार, दिसंबर 01, 2007

अहमद पटेल के भरोसे नरेन्द्र मोदी

    रेन्द्र मोदी के 'विकास' और मनमोहन सिंह अथवा बुद्धदेव के 'विकास' में फर्क नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच अथवा उमा भारती का रिलायन्स फ्रेश के प्रति विरोध क्रमश: राँची और इन्दौर में होता है । अहमदाबाद , वडोदरा और सूरत में यह विकास (रिलायन्स फ्रेश टाइप) फलता - फूलता है । ' विशेष आर्थिक क्षेत्र ' और उनके लिए बनने वाले परमाणु बिजली घर यदि बंगाल के सिंगूर के निकट बनते हैं तो गुजरात के भावनगर के निकट भी बन रहे हैं ।

    सिर्फ़ साम्प्रदायिकता को राजनीति का आधार बनाने की जैसे एक सीमा है वैसे ही साम्प्रदायिकता-विरोध की राजनीति करने वालो की भी एक सीमा होती है यदि वे   आर्थिक नीतियों का विकल्प नहीं दे पाते ।   

     गुजरात से लोकसभा के लिए चुने गए सदस्यों की संख्या में भाजपा और कांग्रेस में उन्नीस - बीस (मुहावरा) का फर्क है । इसके बावजूद मोदी विरोधी सामाजिक तबके ( पटेल ) के भाजपा के विरोध में मुखर न हो पाना मोदी के हक में सब से बड़ी ताकत है । केशूभाई पटेल समर्थक कई विधायक भले ही इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं परन्तु स्वयं केशूभाई और कंशीराम राणा जैसे मोदी विरोधी नेताओं ने भाजपा नहीं छोड़ी है । वे अभी भी ख्वाब देख रहे हैं कि चुनाव के बाद वे ही भाजपा विधायक दल के नेता चुने जाएंगे। इस परिस्थिति का पूरा पूरा लाभ उठाने के लिए नरेन्द्र मोदी एक फिरकावाराना महीन खेल खेल रहे हैं । खुद से विमुख हो रही पटेल बिरादरी से मोदी पूछते हैं , ' क्या आप नरेन्द्र मोदी की जगह अहमद पटेल को मुख्यमन्त्री बनाना चाहते हैं ? '

    नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप मे किसी नेता के न प्रस्तुत होने का लाभ भाजपा को मिल रहा है । राज्य में सक्रिय दोनों प्रमुख दलों की समान आर्थिक नीतियों का खामियाजा अन्तत: गुजरात के दलित , आदिवासी , किसान और अकलियतों को भुगतना पड़ सकता है।

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