" डबल जियोपार्डी " नारद की राहुल पर
चिट्ठकार राहुल जन्मना भारतीय है । उस पर भारत का संविधान लागू होता है । भारत के किस्से , कहानियाँ और कहावतें भी । एक किस्सा चर्चित है जिसमें असामी से सजा देने वाले पूछते हैं , ' पाँच किलो प्याज खाओगे या पचास चप्पल ? ' इसमें असामी को सजा पसन्द करने की छूट थी । इस छूट की लम्बी रस्सी में वह उलझ जाता है और दोनों सजाएँ भुगतता है ।
राहुल ने एक पोस्ट आपत्तिजनक , ठेस पहुँचाने वाली शैली में लिखी । धुरविरोधी ने अपनी सौम्य शैली में तथा मैंने उसीकी शैली में पोस्ट पर टिप्पणियाँ की । राहुल का चिट्ठा नारद पर आने से रोक दिया गया । उसने आहत चिट्ठाकारों और पाठकों से खेद प्रकट किया । नारद ने कहा , 'पानी अब सिर के ऊपर से जा रहा है'। एक छोटा अन्तराल बीता है और चूँकि नारद मुनि ने मौन ले लिया है इसलिए अब हमें पता भी नहीं चल रहा है कि पानी अब कहाँ से जा रहा है ? उसका जलस्तर क्या है ? मौन के ठीक पहले 'नारद उवाच' और धुरविरोधी के चिट्ठों पर उनकी वाणी के बाण चले थे।सिर्फ़ 'हाँ या नहीं में जवाब दीजिए' वाली स्कूल - मास्टर शैली में ।
नारद की मेज़बानी कोई अमेरिकी जालस्थल करता है । यानी अपना नारद उससे जुड़ा है - नालबद्ध । लाजमीतौर पर उसका प्रतिदावा कहता है ," किसी भी किस्म के विवाद की स्थिति में न्यायालयीन क्षेत्र संयुक्त राज्य अमरीका (USA) रहेगा. "
इसलिए आज अमेरिकी संविधान और कानून की चर्चा करनी पड़ रही है । अमेरिकी संविधान किसी भी जुर्म के दोहरे अभियोजन और दोहरी सजा पर रोक लगाता हैं । अभियोजन का जोखिम एक बार ही उठाना पड़े।यह रोक अमेरिकी विधि व्यवस्था की एक बहुचर्चित विशिष्टता है । इसके उल्लंघन को Double Jeopardy - डबल जियोपार्डी कहा जाता है ।
हॉलीवुड की एक जबरदस्त फिल्म थी इसी नाम की - डबल जियोपार्डी । देखी जरूर थी, लेकिन उसका विव्ररण देने का सामर्थ्य जिनमें है उनसे कहूँगा कि इस पर फुरसत में लिखें । चिट्ठाकारी के स्वयंभू जॉर्ज क्लूनी - प्रमोद कुमार , सेरिल मुक्कदस गुप्त , विनय जैन ,सुनील दीपक अथवा ' बीस साल बाद' के असित सेन की याद दिलाने वाले समीरलाल डबल जियोपार्डी के बारे में सक्षम और रोचक तरीके से बता सकते हैं ।
अमेरिकी कम्पनियों अथवा जालस्थल द्वारा दुनिया के अन्य भूभाग में जब कोई करतूत की जाती है तो उसके लिए एक अमेरिकी कानून है - विदेशी व्यक्ति क्षतिपूर्ति कानून । अपना राहुल विदेशी हुआ जो 'न्याय-क्षेत्र' नारद के विवादों के निपटारे के लिए मुकर्रर है , उनके हिसाब से । भोपाल गैस काण्ड की कसूरवार लाल एवरेडी बनाने वाली यूनियन कारबाइड ( अब कम्पनी डाओ केमिकल ने खरीद ली है) के तत्कालीन अध्यक्ष एण्डरसन के प्रत्यर्पण और कम्पनी पर क्षति-पूर्ति के दावे के लिए भोपाल की गैस पीडित महिलाओं ने इसी कानून के तहत अमेरिका में भी एक दावा पेश किया हुआ है ।
कोलम्बिया स्थित कोकाकोला के बॉटलिंग प्लान्ट के मजदूर नेताओं की हत्याओं पर विचार भी इस कानून के तहत अमेरिका में चल रहा है । इस मसले पर अधिक जानकारी हिन्दी में तथा अँग्रेजी में उप्लब्ध है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की करतूतों के खिलाफ़ लड़ने के दौरान इस कानून के अध्ययन का अवसर मुझे मिला ।
पन्ना हटाने और नारद द्वारा रोके जाने के बाद भी राहुल त्रृटिपूर्ण आलोचनाओं का शिकार है । 'चिट्ठाकारी की आलोचना छापता था ' ,अपने गैर-प्रतिबन्धित चिट्ठों पर लिखता रहे' और 'नया चिट्ठा पंजीकृत करा ले ,उस पर लिखे' आदि आदि। यह मानसिकता याद दिलाती है कि इतिहास में कभी चार्वाक के प्रति भी ऐसा रवैया रखने वाले लोग हुए थे और इस वजह से चार्वाक दर्शन के बहुत से हिस्से वाँग्मय से ही गायब कर दिए गए । इसी मानसिकता से बुद्ध से बुद्धू और और लुँच मुनि से लुच्चा शब्द बनाया गया । कबीर साहब को होली की गालियों के साथ - ' कबीरा सररर ' में जोड़ दिया गया ।
मुझे सबसे ज्यादा दु:खद 'रूस गईलं सैयाँ हमार' (मतलब सैयाँ हैज़ गॉन टु रशिया नहीं ) वाली स्थिति लग रही है । मामला मन्ना डे के , 'कैसे समझाऊँ?' - इस गीत के मुखड़े के उत्तरार्ध जैसा हो रहा है । धार्मिक आस्था पर चोट से बड़ी चोट !सभव है आस्थाओं में सूक्ष्मभेद करना लोकतांत्रिक होगा। पर्यूषण के आखिरी दिन सभी से क्षमा माँगने और क्षमा करने वाली महान जैन परम्परा की याद बार - बार आ रही है। जहाँ जैन आबादी तुलनात्मक रूप से ज्यादा है - राजस्थान ,गुजरात , महाराष्ट्र आदि में इस अवसर पर अखबारों में विज्ञापन भी छपते हैं । इन विज्ञापनों में कुछ ऐसे पद हुआ करते हैं -
क्षमा मैं चाहता सबसे,
मैं भी सबको करूँ क्षमा ,
मैत्री मेरी सभी से हो,
किसी से वैर हो नहीं ।
कल यह पोस्ट डालनी थी। बिटिया प्योली ने बताया कि संगीत दिवस है ,फिर नारद पर युनुस भाई के पहले श्रव्य कार्यक्रम की सूचना देखी और जीमेल पर नितिन का ऐलान । कविगुरु रवीन्द्रनाथ का एक गीत है , 'भेंगे मोर घरेर चाबी , निए जाबी के आमारे । ओ बन्धु आमार !'। इसका गुजराती अनुवाद (धुन बरकरार रख कर) नारायण देसाई ने किया है - रे मारां घरनां ताळा तोडी वाळा,लई जशे रे !' । हिन्दी में इस धुन पर बप्पी लाहिरी का टूटे खिलौने का एक गीत १९७८ में आया था,बोल अनुदित नहीं थे।फिर भी सुन्दर थे । सोचा था कि कल का दिन चिट्ठे पर गीत डालने के लिए उचित रहेगा , दुर्भाग्य की संजाल पर मिला नहीं । मनीष ,सागर ,विनय , युनुस या मैथिली गाने की कड़ी भेज दें तब जोड़ लूँगा। आज तो सिर्फ़ मुखड़ा चिट्ठाकार राहुल और नारद को समर्पित है ,
नन्हा-सा पंछी रे तू
बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,
उड़ना जो चाहा भी
तो न तुझे उड़ने दिया,
लेके तू पिंजरा उड़े
चले कुछ ऐसी हवा । पंछी रे!पंछी रे!
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