गुरुवार, मई 31, 2007

गांधी से प्रभावित किसान नेता के बहाने












[ मुकेश अम्बानी द्वारा सब्जी-फल बेचने के लिए रिलायन्स फ़्रेश नामक एक कम्पनी की शुरुआत हुई है । राँची और इन्दौर में रिलायन्स फ़्रेश की दुकानों पर शहर में पटरियों पर और ठेले पर फल - सब्जी बेचने वाले लोगों ने इसका तीखा प्रतिकार किया ।



चिट्ठालोक में देबाशीष ने इस मसले पर एक परिचर्चा प्रसारित की है । खेती-किसानी और शहरी सभ्यता के हाशिये पर जी रहे लोगों द्वारा देश के सब से बड़े पूँजीपति से लोहा लेने की शुरुआत से हमें एक किसान नेता की करतूतों की याद ताजा हो गयी ।



जोशे बोव्हे के बारे में मेरा यह लेख हिन्दुस्तान के सम्पादकीय पृष्ट पर २३ अक्टूबर , २००३ को छपा था । २२ जनवरी २००४ को कोका कोला के बॉटलिंग संयंत्र के खिलाफ केरल के प्लाचीमाड़ा में चल रहे संघर्ष के अन्तर्गत एक 'विश्व जन जल सम्मेलन ' में मुझे भाग लेने का अवसर मिला तब जोशे बोव्हे से मुलाकात का अवसर मिला था । ]



विश्व के अलग - अलग कोनों में घटित किसान - आक्रोश की इस घटनाओं पर गौर करें - खाद्यान्न उत्पादन की जो प्रक्रिया समूची दुनिया की खेती पर कब्जा करना चाहती है उसकी एक प्रतीक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ' मैक्डोनाल्ड ' को मानते हुए १२ अगस्त , १९९९ को फ्रांस के एक कस्बे मिलाऊ में किसानों ने कंपनी की निर्माणाधीन दुकान को ध्वस्त कर दिया था । पुलिस को कार्यक्रम की इत्तला दे दी गई थी । कार्यक्रम दिनदहाड़े हुआ । एक दरोगा ने कार्यक्रम के पूर्व किसानों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि कंपनी के प्रबंधकों से कह कर वह कोई प्रतीक चिह्न रखवा देगा जिसे तोड़ कर किसान अपना कार्यक्रम ' संपन्न ' कर सकते हैं । किसानों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और कंपनी के तमाम खिड़की , दरवाजे और पार्टिशन दो ट्रालियों में लाद कर उन्हें पुलिस मुख्यालय ले जा कर सुपुर्द कर दिया । सड़क के दोनों तरफ जुटी जुटी जनता ने करतल ध्वनि से इस काफ़िले का स्वागत किया । १९९८ में सिएटल में जीन संवर्धित मक्के की फसल को बर्बाद करने के आरोप में कई किसानों को न्यायालय द्वारा दोषी पाया गया । १९९९ में सिएटल में विश्वव्यापार संगठन के सम्मेलन के विरुद्ध हुए प्रदर्शन में सैंकड़ों किसानों ने भी भाग लिया ।



२६ जनवरी , २००१ को ब्राजील के एक कस्बे ' नाओ मी टोक ' में हजारों गरीब किसानों ने जैविक तकनीक और बीजों के उत्पाद से जुड़ी दानवाकार बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसान्टो के प्रयोगों के लिए बने फार्म पर हमला बोल दिया । इस फार्म के करीब तीन एकड़ जमीन में लगी जीन संवर्धित सोयाबीन की फसल को उखाड़ फेंका ।



इस सभी घटनाओं का केन्द्र बिंदु ' किसानों का रॉबिनहुड ' कहे जाने वाले फ्रांसीसी किसान नेता जोशे बोव्हे हैं । जोशे बोव्हे की पृष्टभूमि १९६८ के नववामपंथी रुझान के युवा आक्रोश में शिरकत की रही है परंतु किसान आंदोलन से जुड़ने के बाद अपने आंदोलन को वे ' चे ग्वेवारा से अधिक गांधी से प्रभावित ' मानते हैं । उनकी तुलना आस्ट्रिक्स नामक कार्टून नायक से भी की जाती है जो ताकतवर रोमन साम्राज्य को चुनौती देने वाला चरित्र था। आस्ट्रिक्स साम्राज्यवादी आंधी के समक्ष , डट कर खड़े फ्रांसीसी व्यक्तित्व का भी प्रतीक है । साम्राज्य का केन्द्र रोम से हट कर न्यूयॉर्क और सिएटल के समिति कक्षों में भले चला गया हो लेकिन जोशे बोव्हे के वैश्वीकरण विरोध में ' आस्ट्रिक्स ' का तेवर झलकता है । जमीन से जुड़े इस किसान का कहना है कि स्पेन के गृहयुद्ध के क्रोपटकिन जैसे अराजकतावादियों के अलावा उन पर ' अपने जीवन को बदले बिना दुनिया में बदलाव नहीं लाया जा सकता ' तथा ' सशक्त अहिंसात्मक व प्रतीकात्मक कार्रवाइयों को बड़े जनांदोलनों से समन्वित करने ' की प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी से मिली ।छठे दशक के मार्टिन लूथर किंग के नागरिक अधिकार आंदोलन तथा कैलिफोर्निया के अंगूर बागानों में काम करने वाले गांधीवादी सीजर शावेज से भी उन्हें इसी कारण प्रेरणा मिली।



आस्ट्रिक्स , साभार विकीपीडिया



१९८१ में मितरां के चुने जाने के बाद किसानों के एक तबके में आशा जगी थी । किसान आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों का तर्क था कि , ' हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे सत्ता में आए 'समाजवादियों ' का नुकसान हो जाए ' । कुछ लोग यह सोचकर दिग्भ्रमित हो गए कि ' समाजवादियों के आने से चीजें बदलेंगी मगरं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ' । पैसा सबसे महत्वपूर्ण माना जाने लगा , व्यवसायीकरण शुरु हो गया तथा सामाजिक प्रश्नों के भी 'व्यक्तिगत समाधान ' ढूंढ़ने की वृत्ति बढ़ने लगी । जोशे बोव्हे के किसान आंदोलन पर इन बातों का प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ा । उन्हीं दिनों उन्होंने सघन खेती के विकल्प में छोटे उत्पादकों को संगठित करना शुरु किया तथा तरुणों को आंदोलन से जोड़ा । नब्बे के दशक में सामाजिक सरोकारों के कुछ मुद्दे एक नई ढंग की राजनीति का हिस्सा बन सके । बेघरों के लिए घर का संघर्ष एक ऐसा ही मुद्दा था जो बाद में शुरु हुए वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन का हिस्सा बन गया । सामाजिक प्रश्नों से जुड़े रचनात्मक कार्यक्रमों से जिस शक्ति का निर्माण होता है वह संघर्ष के मौकों पर प्रकट होती है । ' मैकडॉनाल्ड ' के शोरूम को ध्वस्त करने का मुकदमा जब जून २०० में चला तब उसकी सुनवाई के लिए दस हजार समर्थकों की भीड़ जुटती थी । विश्व अर्थव्यवस्था को समझने की वैश्विक दृष्टि से संघर्ष के स्वरूपों में भी बदलाव आए हैं । कारखानों में आंदोलन तथा सरकार से माँग करने वाले आंदोलनों में कोई दम-ख़म नहीं रह गया । विश अर्थव्यवस्था को शत्रु के रूप में देखना जनता के लिए अधिक सरल था । अर्थनीति जब मुख्यधारा की राजनीति से असम्पृक्त हो जाती है तब एक नए किस्म का बेगानापन पैदा होता है । वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन में इस बेगानेपन का शिकार बेरोजगार , बेघर और प्रवासी मजदूरों के तबके शामिल हो गए हैं । नवउदारवादीकरण विरोधी संघर्ष इन सामाजिक आंदोलनों से अछूता नहीं है ।



जोशे बोव्हे का मानना है कि सभी देशों को अपनी खेती तथा खाद्य संसाधनों की सुरक्षा हेतु शुल्क निर्धारण का का अधिकार होना चाहिए । ' अपने जरूरत भर खाद्यान अपनी जमीन पर पैदा करना ' - इसे वे एक मौलिक अधिकार मानते हैं । बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा इसके विपरीत मुर्गी तथा सूअर पालन जैसे उद्योग गरीब देशों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं जहां श्रम सस्ता है तथा पर्यावरण कानून ढीले - ढाले हैं । स्थानीय जनों की खेती बरबाद करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा पहले अमीर देशों में प्रचलित भारी अनुदान युक्त सस्ते माल से बाजार को पाट दिया जाता है । जब छोटे किसान इस प्रक्रिया से उजड़ जाते हैं तब कीमतें बढ़ा दी जाती हैं ।



बहरहाल , मेक्सिको के कानकुन शहर में १० से १४ सितम्बर , २००३ को संपन्न हुई विश्वव्यापार संगठन की पांचवीं मंत्रीमंडलीय बैठक में खेती सबसे विवादास्पद विषय था । अंतर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार का ' उदारीकरण ' विश्वव्यापार संगठन का एक प्रमुख उद्देश्य है । इन नीतियों फलस्वरूप ग्रामीण समाजों में एक अभूतपूर्व संकट पैदा हुआ है । भूख , बेरोजगारी , गैरबराबरी तथा प्राकृतिक संसाधनों का विनाश दुनिया भर में बढ़ रहा है।अमेरिका और यूरोप के दबाव में ऐसे नियम बनवाये गये हैं जिनकी मदद से अपने अतिरिक्त पैदावार को सस्ते दामों पर गरीब देशों के बाजारों में पाटना जारी है । स्थानीय बाजार और प्रबंधन की व्यवस्थाएं समर्थन मूल्य तथा सार्वजनिक वितरण प्रणालियां ध्वस्त की जा रही हैं । किसानों के बीज पर पारम्परिक अधिकार को जैविक सम्पदा पर पेटेंट द्वारा ध्वस्त किया जा रहा है । इन परिस्थितियों में जोशे बोव्हे जैसे किसान नेता विश्वव्यापार संगठन से खेती और खाद्यान को अलग रखने तथा जैविक संपदा पए पेटेंट के निषेध की बात कर रहे हैं । उनकी अपील है कि ' हम अपनी आशाओं तथा संघर्षों का जगतीकरण करें ' । इसी उद्देश्य से विश्व व्यापार संगठन की कानकुन बैठक के समानान्तर दुनिया भर के किसानों , मछुआरों , खेतीहर मजदूरों व ग्रामीण व ग्रामीण महिलाओं का जमावड़ा भी आयोजित किया गया । जोशे बोव्हे इस पहलकदमी के एक प्रमुख व्यक्ति हैं ।





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