गुरुवार, जनवरी 03, 2008

भोगवाद और ‘ वामपंथ का व्यामोह ‘ (३) : ले. सुनील

पिछले भाग : प्रथम , द्वितीय
सोवियत संघ जैसी व्यवस्था की वकालत करने वाले प्रभात पटनायक को इस बात का भी जवाब देना होगा कि आखिर क्यों सोवियत संघ एवं अन्य साम्यवादी देश ताश के पत्तों की तरह बिखर गए ? उनमें क्या अन्तर्विरोध थे ?क्या ऐसा नहीं है कि पूंजीवादी देशों जैसा ही औद्योगीकरण करने के चक्कर में सोवियत संघ ने भी अपने अंदर आंतरिक उपनिवेश विकसित किए , गांव तथा खेती का शोषण किया , क्षेत्रीय विषमताएं बढ़ाई तथा पूर्वी यूरोपीय देशों एवं अपने गैर-यूरोपीय हिस्सों के साथ औपनिवेशिक संबंध कायम किए ? इससे भी यही निष्कर्ष निकलता है कि बड़े उद्योगों पर आधारित औद्योगीकरण ही समस्या की जड़ है । इसका विकल्प ढूंढ़ना होगा । जाहिर है कि यह विकल्प गांधी की ओर ले जाता है ।
प्रभात पटनायक एक प्रखर , ईमानदार और सचेत वामपंथी बुद्धिजीवी होते हुए भी सही निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते हैं । ऐसा लगता है कि आधुनिक औद्योगीकरण के प्रति एक प्रकार का मोह मार्क्सवादी चिंतकों में व्याप्त है । इसके विनाशकारी नतीजी सामने दिखाई देते हुए भी वे इसके विकल्प के बारे में सोचे नहीं पाते । यह मोह कहीं न कहीं आधुनिक जीवन शैली के प्रति मोह से निकला है । इस मोह की झलक तब दिखाई देती है , जब प्रभात पटनायक कहते हैं कि बड़े उद्योगों से पैदा होने वाली चीजें हम छोड़ नहीं सकते , वे हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं । यदि वर्तमान विवाद के ठोस सन्दर्भ में देखें , तो शायद पटनायक कहना चाहते हैं कि सिंगूर में टाटा द्वारा बनाई जाने वाली कारें जरूरी हैं ,चाहे टाटा बनाए , चाहे वे सरकारी कारखानों में बनें । लेकिन निजी कारों से लेकर विलासितायुक्त भोगवादी आधुनिक जीवन की तमाम बढ़ती जरूरतों के कारण ही दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधंध दोहन व विनाश हो रहा है और इन संसाधनों से जुड़े लोगों का विस्थापन , वंचन और उत्पीड़न बढ़ रहा है । इसी के कारण धरती गर्म हो रही है और पर्यावरण के अभूतपूर्व संकट पैदा हो रहे हैं । ये अब मानी हुई बातें हैं , लेकिन लगता है मार्क्सवादी चिंतकों ने अभी तक इन्हें अपनी सोच और अपने विश्लेषण का हिस्सा नहीं बनाया है ।
आधुनिक जीवन शैली और आधुनिक औद्योगीकरण के प्रति मोह ही हमें उस राह पर ले जाता है , जो सिंगूर और नंदीग्राम तक पशुंचाती है । यदि विकास का यही मॉडल है और हर हालत में औद्योगीकरण करना ही है , तो टाटा और सालेम समूह की शरण में जाने में कोई हर्ज मालूम नहीं होगा । इस जीवन शैली व विकास की चकाचौंध में डूबे मध्यम वर्ग का समर्थन भी इसे मिल जाएगा , जिसे पश्चिम बंग के मुख्य्मन्त्री जनादेश कह रहे हैं । तब सैंकड़ों सिंगूर तथा हजारों नन्दीग्राम घटित होते रहेंगे। चीन की ही तरह पश्चिम बंगाल में चाहे नाम साम्यवाद का रहेगा , लेकिन पूंजीवाद का नंगा नाच होता रहेगा । यदि इस वामपंथ को इस दुर्गति व हश्र से बचाना है , तो अभी भी वामपंथी विचारकों के लिए इस व्यामोह से निकलकर , अनुभवों की रोशनी में , नए सिरे से अपने विचारों व नीतियों को गढ़ने का एक मौका है । यह मौका शायद दुबारा नहीं आएगा ।
[ लेखक समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । डाक सम्पर्क : ग्राम/पोस्ट -केसला,वाया-इटारसी ,जि. होशंगाबाद , (म.प्र.) -४६११११, फोन ०९४२५०४०४५२ ]
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नारोदनिक,मार्क्स,माओ और गाँव-खेती : ले. सुनील ,
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2 टिप्‍पणियां:

  1. नया साल आप को भी बहुत-बहुत मुबारक हो...
    सुनीता(शानू)

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  2. aap sahi kah rahe hai,tamam socalled comunist isi brahm me hai ki ve satta me beth ker samaj badal denge,prabhat unhi logo ke logo hai.
    chandrapal

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