मंगलवार, नवंबर 06, 2007

नई राजनीति के नेता : जुगलकिशोर रायबीर

  

 

    उत्तर भारत की राजनीति पर नज़र रखने वाले बसपा के गाँधी-विरोधी तेवर से परिचित होंगे। राजनीति की इतनी खबर रखने वाले यह भी जानते होंगे कि नक्सलबाड़ी उत्तर बंगाल का वह गाँव है जहाँ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हो कर भा.क.पा. ( मा-ले ) की स्थापना हुई और इस नई जमात द्वारा " बुर्जुआ लोकतंत्र को नकारने तथा वर्गशत्रु के खात्मे" के सिद्धान्तों की घोषणा हुई ।

    उत्तर बंगाल के इन्हीं चार जिलों ( कूच बिहार , उत्तर दिनाजपुर , जलपाईगुड़ी , दार्जीलिंग ) से एक अन्य जनान्दोलन भी गत तीन दशकों में उभरा जिसने उत्तर बंग को एक आन्तरिक उपनिवेश के रूप में चिह्नित किया और बुलन्दी से इस बात को कहा कि आजादी के बाद विकास की जो दिशा तय की गई उसमें यह अन्तर्निहित है कि बड़े शहरों की अय्याशी उत्तर बंगाल , झारखण्ड , पूर्वी उत्तर प्रदेश , उत्तराखन्ड , छत्तीसगढ़ जैसे देश के भीतर के इन इलाकों को 'आन्तरिक उपनिवेश' बना कर,  लूट के बल पर ही मुमकिन है । नक्सलबाड़ी में वर्ग शत्रु की शिनाख्त सरल थी । खेती की लूट का शिकार छोटा किसान भी है और उसे खेत मजदूर के साथ मिल कर इस व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ना होगा इस समझदारीके साथ उत्तर बंग में जो किसान आन्दोलन उभरा उसके प्रमुख नेता थे साथी जुगलकिशोर रायबीर जुगलदा की अगुवाई में उत्तर बंगाल के किसान आन्दोलन के दूसरी प्रमुख अनूठी बात थी कि इस जमात में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग जुटे जो अम्बेडकर की सामाजिक नीति के साथ गाँधी की अर्थनीति को लागू करने में यकीन रखते हैं। बंगाल के अलावा कर्नाटक का 'दलित संघर्ष समिति' ऐसी जमात है जिसके एक धड़े ने बहुजन समाज पार्टी में विलय से पहले  कांशीरामजी के समक्ष शर्त रखी थी कि आप गांधी की  आलोचना नहीं करेंगे। 

    नई राजनैतिक संस्कृति की स्थापना के मकसद से १९९२ में जब समाजवादी जनपरिषद की स्थापना हुई तब लाजमी तौर पर इसके पहले अध्यक्ष साथी जुगलकिशोर रायबीर चुने गए और इस बार ( सातवें सम्मेलन में ) पुन: राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। आज सुबह साढ़े चार बजे उनकी मृत्यु हुई । वे रक्त कैन्सर से जूझ रहे थे । अपने क्रान्तिकारी साथी की मौत पर हम संकल्प लेते हैं कि उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने की हम कोशिश करेंगे।

 

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