मंगलवार, सितंबर 09, 2008

इन्स्टीट्यूट ऑफ़ साइन्स बैंगलोर में गांधी

[ गत दिनों मशहूर गीतकार गुलज़ार बैंगलोर स्थित राष्ट्रीय महत्व के संस्थान इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ साइन्स गए थे । 'साहित्य के झरोखे से विज्ञान' विषयक प्रवचन तथा युवा वैज्ञानिकों से सवाल जवाब भी हुए । इसकी सुन्दर रिपोर्ट वहाँ के शोध छात्र श्रीराम यादव ने यहाँ दी है । इस पोस्ट से मुझे कुछ याद आया । १९८१ में समाजवादी अध्ययन केन्द्र, वाराणसी की पत्रिका संभावना का 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विशेषांक' में मैंने गांधीजी के मुख और कलम से प्रकट कुछ स्फुट विचारों को संकलित कर प्रस्तुत किया था । १२ जुलाई १९२७ को इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइन्स जिसे टाटा इन्स्टीट्यूट कहा जाता रहा है में दिए गए (अंग्रेजी में )प्रवचन से प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । ]

   "  मैं सोच रहा था कि यहाँ कहाँ आ गया ? मुझ जैसे देहाती का , जिसकी वाणी यह सब देख कर विस्मय और आश्चर्य से मूक हो जाए , यहाँ क्या काम हो सकता है ? मैं ज्यादा कुछ कहने की मन:स्थिति में नहीं हूँ । मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि आप यहाँ जो बड़ी बड़ी प्रयोगशालाएं और बिजली के वैज्ञानिक उपकरण देख रहे हैं , वह सब करोड़ों सामान्य जनों के इच्छा और अनिच्छा से दिये गये , श्रम का फल है । क्योंकि टाटा ने जो तीस लाख रुपये दिये वह कहीं बाहर से नहीं आये थे , और मैसूर द्वारा दिया गया सारा अनुदान भी कहीं और से नहीं बेगार से ही प्राप्त हुआ था । अगर हम ग्रामीणों के पास जाकर उन्हें समझायें कि हम लोग उनके पैसे का उपयोग किस तरह उन बड़ी बड़ी इमारतों और कारखानों को खड़ा करने में कर रहे हैं जिनसे उन्हें तो नहीं पर शायद उनकी भावी पीढ़ियोंको लाभ हो सकता है तो वे इस बात को नहीं समझेंगे । वे इस बात पर कोई ध्यान ही नहीं देंगे । लेकिन हम उन्हें यह सब समझाने की कोशिश भी नहीं करते , उन्हें कभी कोई महत्व ही नहीं देते और उनसे जो मिलता है उसे हक़ मान कर उनसे ले लेते हैं और यह भूल जाते हैं कि " जिसका प्रतिनिधित्व नहीं है उस पर कर भी नहीं लगाया जा सकता " यह सिद्धान्त उन पर भी लागू होता है । यदि आप सचमुच इस सिद्धान्त को उन पर लागू करें और यह महसूस करें कि उनके प्रति भी आपकी जवाबदेही है तो आपको इन तमाम उपकरणों का एक और पहलू भी नजर आयेगा । तब आपके हृदय में उनके लिये विशाल स्थान होगा , और वह उनके लिए सहानुभूति से भरा होगा और यदि आप उस भावना को स्वच्छ और विमल रखेंगे तो आप अपने ज्ञान का उपयोग उन करोड़ों लोगों के कल्याण के लिये करेंगे जिनके श्रम के बल पर आप शिक्षा प्राप्त करते हैं । .................

    ............ आप जो आविष्कार करें , उन सब का उद्देश्य अगर गरीबों की भलाई नहीं है तो आपके तमाम कल कारखाने और प्रयोगशालायें , जैसा कि राजगोपालचारी ने विनोद में कहा , वास्तव में शैतान के कारखानों से अधिक कुछ नहीं होंगे । अच्छा तो , अगर आप सोचना चाहते हों जैसा कि सभी अनुसन्धान-छात्रों को चाहिए तो आपके सोचने के लिए अब मैंने काफी मसाला दे दिया है । ".... बंगलोर १२ जुलाई १९२७ . 

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